दीपक रंजन दास
पति-पत्नी सुबह-सुबह नई नकोर योगा मैट लेकर घर से निकल रहे थे कि कामवाली आती दिखाई दी। दोनों में खुसर-पुसर हुई और फिर उन्होंने कहा, ‘कमला, तहूं चल न गा। आज योग दिवस हे। योग करबे तो बीमारी ले बचे रहिबे।Ó कमला ने तपाक से जवाब दिया, ‘हमन ला नहीं लगै, योग-व्योग। काम बूता करे में बिक्कट कसरत हो जथे।Ó कितना सही कह रही थी वो। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस ने समूचे विश्व में हमारी शान को बढ़ाया है। इससे भारतीय जीवन पद्धति को स्वीकृति मिली है। पर इसका एक और पहलू भी है। जब पूरी दुनिया शान से योग करती है तब खाते-पीते भारतीय आसन करते हुए लुढ़कते दिखाई देते हैं। जिन्हें अपनी औकात पहले से ही पता होती है वे दरी पर पैरों को सामने फैलाकर बैठे रहते हैं। उन्हें पता है कि घुटना मुडऩे वाला नहीं है। मुड़ भी गया तो ज्यादा देर तक वहां ठहरेगा नहीं। जबरदस्ती की तो थोड़ी देर बाद पालथी खुलेगी नहीं। 90 फीसद लोगों से सामने या दायें-बायें झुका नहीं जाता। आखिर जिस देश ने योग दिया, उस देश में लोगों की ऐसी हालत क्यों हुई। दरअसल हमारे ऋषि मुनि जानते थे कि लोगों को योग के बारे में बताएंगे तो वो करेंगे नहीं। उन्हें यह चोंचले बाजी लगेगी। इसलिए उन्होंने इसे संस्कारों से जोड़कर हमारे जीवन में शामिल कर दिया। पैर छूकर प्रणाम करना सिखाया। खाना पकाने से लेकर भोजन करने तक का काम नीचे बैठकर करने का सलीका सिखाया। कपड़ा धोने के लिए नीचे बैठना सिखाया। झाड़ू लगाकर हैमस्ट्रिंग को सेट करना सिखाया तो पोंछा मारकर डक वाकिंग करवा दी। जिसने इतना कर लिया वह आजीवन फिट। जब लकड़ी की कुर्सियां बनी तो उसकी पीठ सीधी रखी। पर धीरे-धीरे सबकुछ नष्ट हो गया। खाना खड़े-खड़े पकाया जाने लगा, भोजन मेज-कुर्सी पर होने लगा, प्रणाम करने का नया स्टाइल ऐसा है कि झुकने की भी जरूरत नहीं पड़ती। छोटे दरवाजे वाले घर और मंदिर में घुसने के लिए झुकना पड़ता था पर अब दरवाजा इतना बड़ा कर लिया कि अकड़ कर वहां से गुजर सकते हैं। कपड़ा मशीन में धुलने लगा, झाड़ू पोंछा सबकुछ खड़े-खड़े करने का जुगाड़ बना लिया। बड़े घरों के टायलेट में कुर्सी लग गई। शावर और जकुजी में नहाना भी विलासिता हो गई। लिहाजा पैरों ने मुडऩा छोड़ दिया। कमर दर्द अब आम समस्या है। कुछ लोगों ने इस समस्या को समय रहते पहचान लिया। उन्होंने मॉर्निंग वॉक में कुछ कसरतों को शामिल किया ताकि घुटने मुड़े, शरीर दायें-बायें और सामने पीछे झुके। कुछ लोगों ने खेलकूद को अपना लिया तो कुछ लोग जिम जाने लगे। योग अब भी एक दिन का त्यौहार बना हुआ है। शरीर आपका है, चलाना है या नहीं, यह आपको ही तय करना है।
गुस्ताखी माफ: योग दिवस पर पालथी का संकट
