-दीपक रंजन दास
लालटेन एक लंबे समय तक गांव तो क्या शहरों के लिए भी रोशनी का एकमात्र स्रोत रहा है। बिजली की बत्तियां आईं तो लालटेन इतिहास बनने की बजाय मुहावरा बन गया। अब लालटेन दिखाने का मतलब भरमाना या बेवकूफ बनाना भी होता है। ज्योतिषियों के अनुसार सपने में लालटेन जलते देखने का मतलब है चलते काम में रोड़े का अटकना। जो व्यक्ति सपने में जलते लालटेन को देखता है उसका चलता हुआ काम धंधा अचानक रुक जाता है। यही लालटेन नवा रायपुर के विस्थापितों को कष्ट दे रहा है। 2008 में 237.42 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में नवा रायपुर का निर्माण प्रारंभ हुआ। इसके लिए 41 गांवों की जमीन का अधिग्रहण किया गया। कुछ लोगों की जमीनें प्रशासनिक बल से छीन ली गईं। विस्थापितों को शानदार व्यवस्थान, रोजगार का अवसर देने से लेकर गांव में स्कूल, कालेज और अस्पताल बनवाने तक का आश्वासन दिया गया। आवासीय पट्टा, दुकान, गुमटी, पसरा के लिए चबूतरा बनवाने की बात भी कही गई। पर न तो शहर बसा और न यहां धंधे की कोई सूरत बनी। शाम ढलते ही नवा रायपुर की वीरान सड़कें और आलीशन इमारतों के स्याह साए भुतहा माहौल बना देते हैं। विस्थापन पीडि़त चार दिन की पदयात्रा कर 112 किलोमीटर दूर बिलासपुर हाईकोर्ट भी गए। 97 मामले आज तक लंबित हैं। यही बदहाल किसान पिछले 168 दिनों से धरने पर हैं। पुलिस इन्हें खदेडऩे की दो बार कोशिश कर चुकी है पर हर बार ये नई जगह ढूंढ लेते हैं। यहां की कमान कभी आरएसएस के कार्यकर्ता रहे रूपन चंद्राकर संभाल रहे हैं। वे सिर पर कफन का साफा बांधते हैं। इन्हें किसान नेता राकेश टिकैत का भी समर्थन हासिल है जो ट्वीट करते रहते हैं। भूपेश सरकार ने फरवरी 2022 से किसानों से बातचीत शुरू की। 15 सूत्रीय मांगों को 8 सूत्रीय बनाने के बाद 6 मांगों पर सहमति भी बनी। पर किसान आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं। लालटेन दिखाने का यह खेल बहुत पुराना है। 1956 में ओड़ीशा में हीराकुंड बांध बना था। इसके विस्थापित आज तक भटक रहे हैं। कई परिवारों की तो दो-तीन पीढिय़ां निपट चुकीं। छत्तीसगढ़ के कोयलांचल के विस्थापित भी धीरे-धीरे गुम हो गए। दरअसल धरना, प्रदर्शन और भूख हड़ताल का आधुनिक भारत की सरकारों पर कोई असर नहीं होता। ये कोई अंग्रेज थोड़े ही हैं जो डर जाएंगे। ये तो अपने ही लोग हैं और खूब जानते हैं कि ऐसे आंदोलन की कुल औकात कितनी है। विस्थापित कोई सड़क पर थोड़े ही पड़े हैं जो मर-खप जाएंगे। घर-बार छोड़कर कोई कितने दिन इस तरह पंडालों में पड़ा रह सकता है। मौजूदा सरकार इसलिए भी कम्फर्ट जोन में है कि इस मामले में विपक्षी भाजपा उसे नहीं घेर सकती क्योंकि समस्या खुद उसके कार्यकाल की है। भाजपा सरकार 10 साल तक इस समस्या पर बैठी रही है। नई सरकार की उम्र अभी फकत साढ़े तीन साल है। दूधभात तो बनता है भई!