राजनांदगांव। आरटीई के अंतर्गत प्रवेश देने संबंध में हाईकोर्ट के द्वारा कई अहम निर्णय आ चुका है। दिल्ली हाईकोर्ट और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट दोनों यह कहना है कि शिक्षा का अधिकार के अंतर्गत सीटें रिक्त नहीं रहना चाहिये और ज्यादा से ज्यादा सीटों पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को प्रवेश दिया जाना चाहिये, लेकिन छत्तीसगढ़ में बीते वर्ष 40 हजार तो इस वर्ष 38 हजार सीटें रिक्त रह गई, जिसे भरा नहीं जा सका हैं और विगत सात वर्षो में लगभग 15 हजार बच्चों ने आरटीई के अंतर्गत प्रवेश पाने के पश्चात् स्कूल छोड़ दिया है।
आरटीई वेबपोर्टल में अभी कई खामियां है कि स्कूलों को एक किलोमीटर के परिधि में मैपिंग कर दिया गया है, जब दूसरे स्कूलों में सीटे रिक्त रह जाती है तो बच्चे को उस स्कूल में आवेदन करने की सुविधा नहीं दिया जाता है, क्योंकि एक बच्चा एक ही आवेदन कर सकता है। आरटीई में हिन्दी मिडियम और ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे प्रवेश लेने में रूचि नहीं दिखा रहे है, क्योंकि ज्यादातर रिक्त सीटें हिंदी मिडियम और ग्रामीण क्षेत्रों की ही होती है और जो बच्चें प्रवेश ले भी रहे तो वे स्कूल छोड़ रहे है, क्योंकि ज्यादातर ड्रापआउट भी ग्रामीण क्षेत्रों में ही हो रहा है जो चिंता का विषय है, जिस पर स्कूल शिक्षा विभाग और संचालनालय हो गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसियेशन इस संबंध में विगत दो वर्षो सभी जिम्मेदार अधिकारियों का ध्यानाकर्षित करने का प्रयास कर रहा है, लेकिन इस ओर गंभीरता से विचार नहीं किया जा रहा है जिससे आरटीई कानून की मूल उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो पा रहा है। पैरेंट्स एसोसियेशन की मांग है कि गरीब बच्चें को किसी भी स्कूल में आवेदन करने की अनुमति दिया जाना चाहिये।
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शिक्षा का अधिकार कानून का लाभ गरीब बच्चों को नहीं मिल पा रहा है। हम राज्य सरकार को आंकड़ों के सहित जानकारी देकर आरटीई पोर्टल की खामियों को सुधारने की मांग कर रहे, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी गंभीर नहीं है, जिसका नुकसान गरीब बच्चों को हो रहा है।
क्रिष्टोफर पॉल, प्रदेश अध्यक्ष-छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसियेशन