-दीपक रंजन दास
बांग्लादेश के ताजा हालात पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि वहां लोग सड़कों पर हैं, हिन्दुओं को निशाना बनाया गया है। अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश छोड़ दिया है। पड़ोसी देश में तेजी से बदलते घटनाक्रम खुद भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। बांग्लादेश की शिक्षित आबादी और विद्यार्थियों ने राजनीतिक चेतना की एक नई मिसाल पेश की है। सत्ता के खिलाफ संघर्ष के बीच उन्होंने उस खतरे को भी भांप लिया था जो ऐसे आंदोलनों का फायदा उठाते हैं। उन्हें पता था कि हिंसा की घटनाओं के बीच ऐसे अवसरवादी तत्वों को भी मौका मिल सकता है जो हिन्दुओं तथा अन्य अल्पसंख्यकों से नफरत करते हैं। ऐसे लोग आंदोलन की आड़ में उनकी हत्या कर सकते हैं, उनकी संपत्ति लूट सकते हैं। इसलिए उन्होंने मंदिरों तथा हिन्दू बस्तियों की सुरक्षा का अपने स्तर पर बंदोबस्त कर लिया था। बांग्लादेश में हिन्दू 8 प्रतिशत से कुछ अधिक तथा ईसाई आबादी लगभग एक प्रतिशत की है। बांग्लादेश की घटनाओं ने दो किरदारों को सामने ला दिया है। कभी एक दूसरे के प्रबल समर्थक रहे ये दोनों किरदार आज एक दूसरे के धुर विरोधी हैं। इनमें से पहली हैं शेख हसीना और दूसरे हैं नोबेल विजेता मोहम्मद युनूस। शेख हसीना के पास अपने पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की विरासत है। वे स्वयं 20 साल से अधिक समय तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रही हैं। 77 वर्षीय हसीना अब बांग्लादेश की शिक्षित आबादी की आंखों की किरकिरी हैं। राजनीतिक निर्वासन झेल रही हसीना को अब अपने ही देश में खतरा है। भारत, ब्रिटेन, अमेरिका कोई भी देश उन्हें शरण देने के मूड में नहीं है। वहीं मोहम्मद युनूस को ग्रामीण बांग्लादेश की गरीबी मिटाने का अग्रदूत माना जाता है। हसीना से 7 साल बड़े युनूस उनके पिता के भी मित्र रहे हैं। प्रोफेसर युनूस उसी अर्थशास्त्र को फिजूल का विषय बता चुके हैं जिसे कभी वो पढ़ाते थे। उन्होंने माइक्रोफाइनेंस और ग्रामीण बैंक का एक ऐसा नजीर पेश किया जिसे विश्व के 100 से अधिक देशों ने अपनाया। जनवरी 2007 में बांग्लादेश पर सेना को कब्जा करना पड़ा था। शेख हसीना और खालिदा जिया दोनों ही भ्रष्टाचार के आरोप में जेलों में बंद थीं। तब युनूस को प्रधानमंत्री बनाने की पेशकश की गई थी जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था। पर अब वे इस जिम्मेदारी के लिए तैयार बताए जा रहे हैं। हसीना युनूस का मजाक भी उड़ाती रही हैं। देश की हर दुश्वारी का ठीकरा युनूस पर फोडऩे की कोशिश करती रही हैं। यहां तक कह गई हैं कि युनूस को पद्मा (गंगा) नदी में डुबो देना चाहिए। इन छिछोरी टिप्पणियों पर तालियां भले ही बजी हों पर इससे आर्थिक-राजनीतिक हालात नहीं बदले। फिलहाल फोकस वहां के युवाओं पर। जिस राजनीतिक सूझबूझ और गतिशीलता का परिचय बांग्लादेश के छात्र समुदाय ने दिया है, उससे विश्व की शिक्षित युवा आबादी को प्रेरणा लेनी चाहिए।