भाजपा व कांग्रेस दोनों दल इस बार नए चेहरे पर लगा सकते हैं दाँव
दुर्ग (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। चल रही अटकलों पर भरोसा करें तो दुर्ग लोकसभा क्षेत्र का अगला सांसद नया और युवा चेहरा हो सकता है। दरअसल, दोनों ही दल इस बार नए चेहरों पर दाँव लगाने की मानसिकता में हैं। दुर्ग लोकसभा का चुनाव नतीजा पूरी तरह से सामाजिक वोटों पर निर्भर करता है। ऐसे में 33 फीसदी आबादी वाले साहू और 22 फीसद आबादी वाले कुर्मियों का समर्थन काफी मायने रखता है। हालांकि नतीजों को पलटने में कुछ हद तक यादव और सतनामी समाज की भूमिका भी अहम् होती है। 2009 में सामाजिक वोटों से अलग भाजपा ने सामान्य वर्ग से प्रत्याशी दिया था, जिसे दुर्ग के मतदाताओं ने भरपूर समर्थन देकर जीत दिलाई। लेकिन कुल मिलाकर दुर्ग लोकसभा की राजनीति साहू और कुर्मी समाज के इर्द-गिर्द ही घूमती है। वर्तमान में दुर्ग सीट भाजपा के पास है और कुर्मी चेहरे के रूप में विजय बघेल दुर्ग लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, लेकिन मिल रहे संकेत बताते हैं कि पार्टी इस बार साहू चेहरे को मौका दे सकती है। कांग्रेस में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है।
पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले तक छत्तीसगढ़ की दुर्ग लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रही। आजादी के बाद से कांग्रेस यहां लगातार जीत का परचम लहराती रही। हालांकि इस बीच दो बार जनता दल के प्रतिनिधि भी निर्वाचित हुए। 1996 में पहली बार यहां से भाजपा के ताराचंद साहू ने जीत हासिल की और उसके बाद लगातार 4 लोकसभा चुनाव उन्होंने जीते। 2009 के चुनाव से ठीक पहले उन्होंने अपनी सांसदी को खूंटे में टांगकर बगावत का बिगूल फूंक दिया। भाजपा ने उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाकर निष्कासित किया तो उन्होंने छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच की स्थापना कर गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी विचारधारा को एकजुट किया। 2009 में उन्होंने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा की युवा नेत्री सरोज पाण्डेय ने जीत दर्ज कर सनसनी फैला दी। जिले की सामाजिक राजनीति के हिसाब से यह नतीजे अलहदा रहे, लेकिन सामान्य वर्ग के प्रत्याशी की जीत की वजह सामाजिक वोटों का बँट जाना रही। निर्दलीय लड़ रहे ताराचंद साहू को साहू समाज का समर्थन मिला, लेकिन कुर्मी वोटर कांग्रेस के पाले में चले गए। ऐसे में दुर्ग को सामाजिक वोटर्स से इतर सामान्य वर्ग का सांसद मिला। हालांकि 2014 के अगले चुनाव में भाजपा का दाँव बुरी तरह नाकाम रहा। कांग्रेस ने ताम्रध्वज साहू के रूप में साहू प्रत्याशी उतारकर मोदी लहर के बावजूद दुर्ग में जीत हासिल की। साहू ने कांग्रेस का 30 वर्षों का सूखा खत्म किया। 2019 की बात करें तो इस चुनाव में दोनों ही दलों ने कुर्मी प्रत्याशी उतारे थे। भाजपा ने विजय बघेल तो कांग्रेस ने प्रतिमा चंद्राकर को प्रत्याशी घोषित किया। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने और सीएम का गृहजिला होने के बाद भी दुर्ग के नतीजे भाजपा के पक्ष में गए।
विधानसभा की 9 सीटें तय करेंगी नतीजे
दुर्ग लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की कुल 9 सीटें शामिल है। इन्हीं 9 सीटों से नतीजे तय होंगे। इनमें दुर्ग जिले की 6 और बेमेतरा जिले की 3 सीटें शामिल है। दुर्ग जिलांतर्गत पाटन, दुर्ग ग्रामीण, दुर्ग शहर, भिलाई नगर, वैशाली नगर और अहिवारा क्षेत्र आते हैं। वहीं बेमेतरा जिले के बेमेतरा, नवागढ़ और साजा विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इन 9 सीटों में से 2 सीटें नवागढ़ व अहिवारा एससी आरक्षित है। हालिया सम्पन्न विधानसभा चुनाव में इन 9 सीटों में से महज 2 सीटों पर ही कांग्रेस को विजय मिली थी। वहीं एससी आरक्षित दोनों सीटें भाजपा के पाले में गई। यदि इन नतीजों के आधार पर आगामी लोकसभा के नतीजों का मूल्यांकन करें तो कांग्रेस को काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। वैसे, 9 में से जिन 2 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली, वो दुर्ग जिले की पाटन और भिलाई नगर की सीटें हैं। पाटन से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तो भिलाई नगर सीट से युवा नेता देवेन्द्र यादव ने जीत हासिल की। देवेन्द्र की जीत का अंतर काफी कम रहा।
सिर्फ 2014 में मिली कांग्रेस को जीत
अलग राज्य बनने से पहले 1996 में भाजपा ने दुर्ग में पहली बार जीत का खाता खोला और तब से लेकर अब तक (2019 चुनाव तक) सिर्फ एक बार कांग्रेस को जीत मिली। दरअसल, 2014 में कांग्रेस ने भाजपा की सरोज पाण्डेय (सामान्य वर्ग) के सामने साहू समाज के बड़े चेहरे ताम्रध्वज साहू को उतार दिया था। साहू समाज को आमतौर पर भाजपा समर्थक माना जाता है, लेकिन इस चुनाव में समाज ने एकजुट होकर ताम्रध्वज साहू के लिए वोटिंग की। गौरतलब है कि 2014 में पूरे देश में जबरदस्त मोदी लहर थी। बावजूद इसके भाजपा अपना दुर्ग नहीं बचा पाई। जाहिर है कि सामाजिक वोटों की लामबंदी का फायदा कांग्रेस को मिला। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सांसद ताम्रध्वज साहू को विधानसभा का चुनाव लड़वाया। जीत के बाद वे प्रदेश के गृहमंत्री बनाए गए। अगले साल 2019 में जब संसदीय चुनाव का शंखनाद हुआ तो कांग्रेस ने प्रतिमा चंद्राकर के रूप में तो भाजपा ने विजय बघेल के रूप में कुर्मी प्रत्याशी दिए। वर्तमान में विजय बघेल दुर्ग संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।
साहू-कुर्मी सियासत से बनते बिगड़ते समीकरण
दुर्ग लोकसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरणों को देखा जाए सबसे बड़ी आबादी साहू समाज की है। करीब 33 प्रतिशत वोटर इसी समाज से हैं। कुर्मी वोटर लगभग 22 प्रतिशत हैं। ऐसे में पंद्रह प्रतिशत यादव और सतनामी समाज मिलकर कई बार लोगों के अनुमानों को गलत साबित कर देते हैं। विगत चुनाव में कांग्रेस ने तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल की मुंह बोली बहन प्रतिमा चंद्राकर को टिकट दिया था। प्रतिमा चंद्राकर के पिता वासुदेव चंद्राकर विधायक और लम्बे समय तक जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। वे भूपेश बघेल के राजनीतिक गुरू भी थे। लम्बे समय तक दुर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले और केन्द्र में मंत्री रहे चंदूलाल चंद्राकर परिवार से ताल्लुक रखने वाली प्रतिमा चंद्राकर को उन परिस्थितियों में भी हार मिली, जब हालात पूरी तरह से कांग्रेस के मुफीद थे। वास्तव में पीएम मोदी का चेहरा तमाम सकारात्मक परिस्थितियों पर भारी पड़ गया। विजय बघेल जीते तो भाजपा ने उन्हें कांग्रेस के मुख्यमंत्री विजय बघेल के सामने खड़ा करने की कोशिश की। भूपेश बघेल को घेरने के लिए ही भाजपा ने अपने सांसद विजय बघेल को भूपेश के सामने चुनाव मैदान में उतारा।