-दीपक रंजन दास
भाजपा का घोषणा पत्र आ गया। पार्टी ने भले ही प्रत्याशी घोषित करने में एक नया ऑलटाइम रिकार्ड बनाया हो, पर घोषणा पत्र के सिलसिले में ऐसा नहीं कहा जा सकता। पार्टी के पास ज्यादा कुछ था नहीं कहने को। जिन मुद्दों को लेकर वह अब तक छत्तीसगढ़ में माहौल बनाती रही है, उनका उल्लेख वह जाहिर तौर पर घोषणा पत्र में नहीं कर सकती थी। लिहाजा, कोई आश्चर्य नहीं कि धर्मांतरण, शराब बंदी जैसे मुद्दे उसके घोषणापत्र में कहीं नहीं है। पार्टी को काफी पहले ही यह समझ में आ गया था कि कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ में किसानों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। दूसरा यह कि जैसा पागलपन राम मंदिर को लेकर यूपी या बिहार में छा सकता है, वैसा छत्तीसगढ़ में नहीं हो सकता। देश के सभी हिन्दू फुर्सत में नहीं हैं। इक्का-दुक्का सीटों पर इसका असर हो सकता है पर ज्यादा हंगामा किया तो बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है। दरअसल, भाजपा को सत्ता इसलिए नहीं मिली थी कि उसके पास कोई बेहतरीन योजना थी। लोगों ने कांग्रेस के तौर तरीकों से उकता कर भाजपा को चुना था। जिस एंटी इनकमबेंसी फैक्टर की चर्चा भारत के प्रत्येक चुनाव में होती है, वह सबसे ज्यादा कांग्रेस के खिलाफ लागू होता था। दूसरा, बहुसंख्यकवाद की राजनीति को इतना प्रतिसाद तो मिलना ही था। पर राजनीति से परे लोगों के पास जीने के लिए अपना जीवन भी होता है। उसकी अपनी जरूरतें होती हैं। भविष्य को लेकर असुरक्षा की जैसी भावना पिछले दो दशकों में उभरकर सामने आई है, वैसा नब्बे के दशक तक नहीं था। एक तरफ जहां देश का शिक्षा उद्योग डिग्री पर डिग्री, सर्टिफिकेशन पर सर्टिफिकेशन लेकर आ रहा है वहीं दूसरी तरफ बचत सिकुड़ती जा रही है। पिछले पांच-सात सालों में पैकेज को लेकर भी लोगों का भ्रम टूटने लगा है। ऐसे में उन्हें केन्द्र की करामाती सरकार से काफी उम्मीदें थीं। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। एक सांप नाथ तो दूसरा नागनाथ साबित हुआ। अब जब दोनों ही दल समतल पर खेल रहे हैं तो नवोन्मेषी योजनाएं अपने-आप राजनीति के केन्द्र में आ जाती हैं। ऐसी कोई योजना भाजपा के पास थी ही नहीं। लिहाजा, उसका इंतजार करना तो बनता ही था। कांग्रेस का घोषणा पत्र आने के बाद उसने उसका गहन अध्ययन किया और सभी योजनाओं को थोड़ा बढ़ा चढ़ाकर उसे अपना घोषणापत्र बना लिया। जिसे भाजपा रेवड़ी कहती थी, अब वही रेवड़ी उसकी मजबूरी बन चुकी है। लिहाजा 21 क्विंटल धान प्रति क्विंटल 3100 रुपए में खरीदना, विद्यार्थियों को ट्रैवल एलाउंस, विवाहित महिलाओं और खेतिहर मजदूरों को रेवडिय़ां, गरीबों को 500 रुपए में गैस सिलिण्डर पर अब वह कांग्रेस से सहमत दिखाई देती है। इस घोषणा पत्र के खोखलेपन का खुद भाजपा को अहसास है। इसलिए मोटा भाई को घोषणा पत्र को दम देने के लिए एक बार फिर यह दोहराना पड़ता है कि भूपेश सरकार केन्द्र का एटीएम बनी हुई है।
Gustakhi Maaf: खोदा पहाड़, निकला मुसवा
