-दीपक रंजन दास
नवम्बर 2000 में जब मध्यप्रदेश से काटकर छत्तीसगढ़ राज्य बनाया गया तो वहां कांग्रेस की सरकार थी। अजीत प्रमोद कुमार जोगी को छत्तीसगढ़ का पहला सीएम बनने का सौभाग्य मिला। 1998 में रायगढ़ से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए जोगी उस समय लोकसभा सदस्य थे। 2003 में पहली बार राज्य में चुनाव हुआ और भाजपा की सरकार बनी जिसने इसके बाद लगातार तीन कार्यकाल पूरे किये। साल 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जोगी के तौर तरीकों से एक बड़ा तबका नाखुश था। इसलिए कांग्रेस में खेमेबाजी शुरू हो गई। जोगी को अलग-थलग करने के लिए पार्टी में व्यूहरचना शुरू हो गई। यह भी कहा गया कि जोगी की भाजपा से सेटिंग है। भाजपा की लगातार जीत के लिए जोगी को ही जिम्मेदार बताया जाता रहा। दरअसल, 2004 में हुए एक सड़क हादसे के बाद जोगी व्हीलचेयर पर आ गए थे। पार्टी में नेतृत्व को लेकर खींचतान चलती रही। जोगी को थोपा गया नेता बताया जाता रहा। उस समय छत्तीसगढ़ कांग्रेस में नंद कुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल जैसे कई बड़े नेता थे। 2013 में जब नक्सलियों ने सुकमा जिले की झीरम घाटी में कांग्रेस के काफिले पर हमला किया तो जोगी को इसमें भी खलनायक बताया गया। इस हमले में कांग्रेस की पहली पंक्ति के अधिकांश नेता शहीद हो गए। इसके बाद 2014 में कांग्रेस ने राज्य की कमान भूपेश बघेल को सौंप दी। इसके बाद जोगी ने जाति और निष्ठा के नाम पर लगातार हो रहे हमलों के चलते अपनी पार्टी बना ली। तृणमूल कांग्रेस की तर्ज पर इसका नाम रखा जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ – जोगी। बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस ने 2018 में शानदार वापसी की। दो साल बाद 29 मई 2020 को जोगी ने रायपुर के एक अस्पताल में अंतिम सांसें ली। इसके बाद जोगी कांग्रेस में प्रारंभिक हताशा के लक्षण भी दिखाई दिए। पर इस चुनाव से पहले उसमें एक बार फिर जान लौट आई प्रतीत होती है। राज्य विधानसभा चुनाव की कमान संभाल रहे भूपेश बघेल ने जेसीसीजे पर एक बार फिर वोट कटुवा होने का आरोप लगाया है। दरअसल, पार्टी जोगी वाली हो या भूपेश वाली, दोनों तरफ हैं तो कांग्रेसी ही। जब दोनों अपने प्रत्याशी खड़े करते हैं तो कांग्रेस के वोट बंट जाते हैं। प्रमुख प्रतिद्वंद्वी को इसका फायदा मिलता है जो छत्तीसगढ़ के मामले में भाजपा है। भूपेश वाली कांग्रेस के समान मुद्दों को लेकर एक और पार्टी खड़ी हो गई है जिसका नाम है जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी। आरोप हैं कि इसे भी भाजपा फायनेंस कर रही है ताकि कांग्रेस का वोट शेयर कम किया जा सके। बहरहाल, मल्टी पार्टी पॉलिटिक्स के तमाम दुष्प्रभावों के लक्षण इस बार छत्तीसगढ़ में दिखाई दे रहे हैं। 24 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार पहले ही बन चुके हैं। इससे यह संभावना कम हो रही है कि जनता जिसे चाहेगी, उसे चुनाव जिता भी पाएगी।
Gustakhi Maaf: फिर सताने लगा जोगी कांग्रेस का भूत
