नाराज कैडर घर बैठा, प्रत्याशियों को कार्यकर्ताओं का टोंटा, भाड़े की भीड़ जुटाकर कर रहे प्रचार
भिलाई (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। छत्तीसगढ़ में जहां एक ओर कांग्रेस का चुनाव प्रचार अभियान जोरों पर है, वहीं दूसरी ओर भाजपा में खामोशी छाई हुई है। पार्टी का कैडर टिकट वितरण के बाद घर बैठ गया है, जिसके चलते प्रत्याशियों को प्रचार के लिए कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटाना मुश्किल हो रहा है। कई जगहों पर भाड़े की भीड़ जुटाकर माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। प्रशासनिक तैयारियों के बीच भाजपा उम्मीदवारों के माथे पर चिंता की रेखाएं साफ देखी जा सकती है। दोनों ही दलों ने सभी 90 सीटों के लिए हाल ही में अपने प्रत्याशियों का ऐलान किया था। पहले चरण में राज्य में कुल 20 सीटों पर वोटिंग होनी है, जिसके लिए नामांकन दाखिले से लेकर नाम वापसी की तारीख अब खत्म हो चुकी है। प्रत्याशी घर-घर दस्तक दे रहे हैं। पहले चरण की वोटिंग के लिए बस्तर पर सबकी निगाहें टिकी हुई है। 2018 के चुनाव में यहां की सभी 12 सीटें कांग्रेस ने अपने नाम की थी।
जिन 5 राज्यों में चुनाव होने जा रहा है, उनमें छत्तीसगढ़ इकलौता राज्य है, जहां दो चरणों में वोटिंग होगी। पहले चरण में 7 नवम्बर को और दूसरे चरण में 17 नवम्बर को मतदान होना है। पहले चरण के लिए 13 अक्टूबर को अधिसूचना जारी हुई थी। जबकि 20 अक्टूबर को नामांकन दाखिले का आखिरी दिन था। नामांकन पत्रों की जांच 21 अक्टूबर को हुई और 23 अक्टूबर तक नाम वापसी का दिन तय था। यह सारी प्रक्रियाएं पूर्ण होने के बाद सिर्फ 7 नवम्बर को वोटिंग होना ही बाकी है। इसके लिए प्रत्याशियों ने घर-घर सम्पर्क अभियान शुरू कर दिया है। सत्तारूढ़ दल कांग्रेस में जहां चुनाव को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है, वहीं भाजपा में कार्यकर्ताओं को घर से निकालना मुश्किल हो रहा है। प्रत्याशियों को कार्यकर्ताओं की मान-मनौव्वल करनी पड़ रही है। इसके बाद भी अनुशासित और कैडर बेस पार्टी को कार्यकर्ताओं का साथ नहीं मिल पा रहा है। भाजपा आलाकमान ने इस बार जिस अंदाज में टिकट वितरण किया था, उसे जमीनी कार्यकर्ता स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि पार्टी के नेताओं का मानना है कि स्टार प्रचारों के दौरों के साथ ही कार्यकर्ता रिचार्ज होंगे और चुनाव अभियान में भागीदारी कर पार्टी को जीत दिलाएंगे।
भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि कार्यकर्ताओं को भरोसेमंद चेहरे नजर नहीं आ रहे हैं। पिछले चुनाव तक डॉ. रमन भाजपा का चेहरा हुआ करते थे, लेकिन इस बार उन्हें भी हाशिए पर डाल दिया गया है। कार्यकर्ताओं का मन भी इसीलिए डोल रहा है, क्योंकि पार्टी ने कोई सीएम फेस सामने रखा नहीं है और स्थानीय प्रत्याशी के लिए वे काम करना नहीं चाह रहे हैं। पार्टी के बड़े नेता भी यह स्वीकार कर रहे हैं कि इस बार पूरे राज्य में भाजपा को चुनावी माहौल बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। दूसरी ओर कांग्रेस में सब कुछ पहले से ही तय है। पार्टी के कार्यकर्ताओं को पता है कि इस बार उन्हें सीएम भूपेश बघेल की अगुवाई में चुनाव लडऩा है। पूरे चुनाव अभियान की कमान भी खुद सीएम भूपेश ने संभाल रखी है। चुनावी सभाओं में अब तक वे 4 घोषणाएं या वायदें कर चुके हैं, उसके बाद कार्यकर्ता और ज्यादा उत्साहित हैं। उन्हें पूरा भरोसा है कि एक बार फिर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है। एक ओर जहां भाजपा के पास बताने को कुछ नहीं है, वहीं कांग्रेस के कार्यकर्ता अपनी सरकार की उपलब्धियों को मतदाताओं तक पहुंचा रहे हैं। भाजपा के लोग अपनी लकीर बढ़ाने की बजाए कांग्रेस की लकीर छोटी करने में लगे हैं।

क्यों निरूत्साहित है कार्यकर्ता
भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने इस बार बड़ा दांव चलते हुए किसी भी चुनावी राज्य में सीएम प्रोजेक्ट नहीं किया है। इसके चलते कार्यकर्ताओं के समक्ष धर्मसंकट की स्थिति है कि वे किसे अपना नेता मानें। वहीं पार्टी आलाकमान ने इस बार कार्यकर्ताओं की पूछपरख के बिना ही सीधे दिल्ली से प्रत्याशी घोषित किए हैं। इससे कार्यकर्ताओं के भीतर यह बात घर कर गई है कि उनके ऊपर अयोग्य और अक्षम प्रत्याशियों को थोप दिया गया है। अनेक सीटों पर ऐसे चेहरों को टिकट मिली है, जिसे स्वयं उनके पड़ोसी भी नहीं जानते। भले ही पार्टी यह मानकर चल रही हो कि मोदी के चेहरे पर उसे वोट मिल जाएंगे, लेकिन पार्टी के लोग इससे इत्तेफाक नहीं रखते। दूसरी ओर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ने आम आदमी से जुड़े इतने ज्यादा और जमीनी स्तर पर काम किए हैं कि भाजपाइयों को भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के अलावा और कोई मुद्दा नहीं मिल रहा है। राज्य में ईडी और आईटी की कार्रवाइयों को लेकर भी खासी प्रतिक्रिया है और जनमानस में यह बात जोरों पर है कि विरोधी दलों की सरकारों पर दबाव बनाने के लिए दिल्ली से पूरा खेल खेला जा रहा है। इन तमाम स्थितियों से जमीनी कार्यकर्ताओं को ही रूबरू होना पड़ रहा है। इसलिए भी भाजपा के कार्यकर्ता चार्ज नहीं हो पा रहे हैं।
पहले दौर में यहां होना है चुनाव
छत्तीसगढ़ में पहले चरण में कुल 20 सीटों पर वोटिंग होनी है। इनमें पंडरिया, कवर्धा, खैरागढ़, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, डोंगरगांव, खुज्जी, मोहला मानपुर, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर, कांकेर, केशकाल, कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, जगदलपुर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंटा की सीटें शामिल है। इनमें से कुछेक सीटों को छोड़ दें तो बाकी में ठीक-ठाक मुकाबले की संभावना जताई जा रही है। भले ही भाजपा ने इनमें से ज्यादातर सीटों पर काफी पहले ही प्रत्याशी घोषित कर दिए थे, बावजूद इसके चुनावी माहौल बनाने में उसके प्रत्याशी और नेता काफी हद तक असफल रहे हैं।
दूसरे चरण में यहां होंगे चुनाव
दूसरे चरण में राज्य की 70 सीटों पर मतदान होगा। इसमें भरतपुर-सोनहत, मनेन्द्रगढ़, बैकुंठपुर, प्रेमनगर, भटगांव, प्रतापपुर, रामानुजगंज, सामरी, लुंड्रा, अंबिकापुर, जशपुर, कुनकुरी, पत्थलगांव, लैलूंगा, रायगढ़, खरसिया, धरमजयगढ़, रामपुर, कोरबा, कटघोरा, पाली-तानाखार, मरवाही, कोटा, लोरमी, मुंगेली, तखतपुर, बिल्हा, बिलासपुर, बेलतरा, मस्तूरी, अकलतरा, जांजगीर-चांपा, सक्ती में चुनाव होगा। इसके अलावा चंद्रपुर जैजैपुर, पामगढ़, सरायपाली, बसना, खल्लारी, महासमुंद, बिलाईगढ़, कसडोल, बलौदाबाजार, भाटापारा, धरसीवा, रायपुर ग्रामीण, रायपुर शहर पश्चिम, रायपुर शहर उत्तर, रायपुर शहर दक्षिण, आरंग, अभनपुर, राजिम, बिंद्रानवागढ़, सिहावा, कुरूद, धमतरी, संजारी बालोद, डोंडीलोहारा, गुंडरदेही, पाटन, दुर्ग-ग्रामीण, दुर्ग शहर, भिलाई नगर, वैशाली नगर, अहिवारा, साजा, बेमेतरा, नवागढ़ शामिल है।