भिलाई। सीईसी की बैठक में छत्तीसगढ़ के ज्यादातर प्रत्याशियों के नाम तय हो जाने के बाद पहली कांग्रेस की पहली सूची कल जारी होगी। इस सूची का टिकट दावेदारों को बेसब्री से इंतजार है। खबर है कि कल उन सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित किए जा सकते हैं, जहां पहले चरण के चुनाव होने हैं। इधर, प्रादेशिक व शीर्ष नेताओं को बगावत का भी डर सता रहा है। हालांकि पार्टी ने ऐसी स्थिति से निपटने के लिए अलग से समिति बना रखी है, लेकिन भाजपा की दो सूचियां जारी होने के बाद जिस तरह का विरोध सामने आया है, उसे लेकर कांग्रेस में भी चिंता है। पार्टी के वरिष्ठ नेता हालांकि प्रदेश में सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त नजर आ रहे हैं।
गौरतलब है कि भाजपा ने अब तक दो चरणों में अपने 85 प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है। पार्टी ने अपनी पहली सूची अगस्त में ही जारी कर दी थी, जब चुनाव तारीखों का अता-पता भी नहीं था। तब कुल 21 प्रत्याशी घोषित किए गए थे। इसके बाद दूसरे चरण में 84 प्रत्याशियों की घोषणा ठीक उस दिन की गई, जब निर्वाचन आयोग ने चुनाव तारीकों का ऐलान किया। अब भाजपा के सिर्फ 5 प्रत्याशी ही घोषित किए जाने बाकी है। कांग्रेस इस मामले में विपक्षी दल भाजपा से पिछड़ गई है। उसके प्रत्याशियों चुनाव तैयारी तक नहीं कर पा रहे हैं। इस पर कई विधायकों की धुकधुकी इसलिए भी बढ़ी हुई है, लेकिन इस बात के संकेत पहले ही दे दिए गए थे कि इस बार कई विधायकों के टिकट काटे जाएंगे। कांग्रेस के पास वर्तमान में छत्तीसगढ़ में कुल 72 सीटें हैं। इनमें से ज्यादा विधायक करीब दो महीनों से चुनाव तैयारियों में लगे हुए हैं। उन्होंने क्षेत्र में सक्रियता भी बढ़ा दी है। लेकिन इन विधायकों को भी टिकट की अधिकृत घोषणा का इंतजार है। प्रारम्भ में कहा जा रहा था कि कांग्रेस, भाजपा के प्रत्याशियों का इंतजार कर रही है और उसी के अनुरूप प्रत्याशी तय किए जाएंगे। संभवत: प्रत्याशियों के चयन में विलम्ब की एक बड़ी वजह यह भी है।
छत्तीसगढ़ में पिछड़ा वर्ग की आबादी सबसे ज्यादा है और कांग्रेस ने सत्ता संभालने के बाद से इस वर्ग का भरपूर ख्याल रखा है। लेकिन इस बार भाजपा ने भी कांग्रेस को पटखनी देने के लिए अब तक घोषित 85 प्रत्याशियों में से 35 से ज्यादा टिकट इसी वर्ग को दिए हैं। हालांकि पार्टी के भीतर यह आवाज भी उठ रहे हैं कि टिकट वितरण में कई समाजों की अनदेखी की गई है। जिस तरह से भाजपा ने टिकट वितरण में स्थानीय नेताओं व कार्यकर्ताओं की अनदेखी की है, माना जा रहा है कि उसका नुकसान भी भाजपा को ही होगा। पार्टी ने इस बार के चुनाव में सीएम फेस सामने नहीं किया है। इसके बजाए सामूहिक नेतृत्व व पीएम मोदी के चेहरे को सामने किया जा रहा है। यह काफी कुछ 2018 में कांग्रेस द्वारा अपनाए गए फार्मूले जैसा ही है। दरअसल, भाजपा के शीर्ष नेताओं को लगता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में जनता ने डॉ. रमन सिंह के चेहरे को नकार दिया था, जबकि इसके बाद हुए लोकसभा के चुनाव में पीएम मोदी के चेहरे पर वोटिंग की थी, जिसके चलते पार्टी को 11 में से 9 सीटों पर जीत मिली। इसलिए भी छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन को इस बार आगे नहीं किया गया। हालांकि छत्तीसगढ़ में टिकट वितरण में उनकी पसंद को खासी तवज्जो मिली है।

आवेदन प्रक्रिया साबित हुई औपचारिक
कांग्रेस ने 2018 की ही तरह इस बार भी टिकट वितरण के जमीनी प्रक्रिया को अपनाया था। प्रत्येक दावेदार को ब्लाक स्तर पर आवेदन करना था। यहां से आवेदन जिला स्तर पर और वहां से प्रदेश संगठन के पास पहुंचे। लेकिन विगत चुनाव की ही तरह इस बार भी इस पूरी प्रक्रिया को शीर्ष स्थल पर ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। रायपुर और दिल्ली में बैठकर नए सिरे से माथापच्ची की गई। संभवत: यही कारण है कि पार्टी के नेताओं को कांग्रेस में भी व्यापक स्तर पर विरोध की आशंका बनी हुई है। पार्टी के जानकारों का दावा है कि जिन लोगों के नाम रायपुर से तय हो गए थे, उन्हें पहले ही चुनाव की तैयारियां करने को कहा जा चुका है। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में इसकी झलक भी देखने को मिल रही है। प्रत्येक क्षेत्र में पार्टी का एक चेहरा खासतौर पर ज्यादा सक्रिय नजर आ रहा है। अब इस सक्रिय नेता को दिल्ली से टिकट मिलेगी या नहीं, इसी को लेकर संशय है। यदि प्रादेशिक नेताओं द्वारा तैयार की गई सूची और स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा तय नामों पर मुहर लगाई जाती है तो क्षेत्र में सक्रिय ऐसे नेताओं को टिकट मिलने की प्रबल संभालना है।
टिकट वितरण में भविष्य का ध्यान
ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस इस बार टिकट वितरण के दौरान भविष्य को भी ध्यान में रखेगी। पार्टी सूत्रों का दावा है कि प्रत्याशी चयन में युवा, अनुभव और सामाजिक व जातीय समीकरणों का विशेष तौर पर ध्यान रखा गया है। पार्टी इस बार 2018 की अपेक्षा ज्यादा महिलाओं को टिकट देने जा रही है। स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह बात कही है। इससे पहले प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी कुमारी सैलजा भी कुछ ऐसा ही कह चुकीं हैं। माना जा रहा है कि पिछली बार की ही तरह इस बार भी टिकट वितरण में सीएम भूपेश बघेल की पसंद को महत्व दिया गया है। विगत चुनाव में भूपेश बघेल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उनके नेतृत्व के साथ ही एक संयुक्त टीम तैयार की गई थी, जिसमें टीएस सिंहदेव, डॉ. चरणदास महंत और ताम्रध्वज साहू अगुवा थे। सबको अलग-अलग दायित्व सौंपे गए थे और सबने अपेक्षानुरूप योगदान किया था। इस बार के चुनाव में यह प्रक्रिया देखने को नहीं मिली। सामाजिक लामबंदी में भी विगत चुनाव की अपेक्षा इस बार कांग्रेस की स्थिति कमजोर मानी जा सकती है। 2018 में पिछड़ा वर्ग को सकेलने का काम खुद भूपेश बघेल और ताम्रध्वज साहू ने किया था, लेकिन इस बार स्थितियां बदली हुई दिखती है। वहीं सतनामी समाज भी इस बार कांग्रेस से छिटक चुका है, जिसके लिए वैसे तो कुल 10 सीटें हैं, लेकिन इस समाज का प्रभाव 20 से भी ज्यादा सीटों पर है। कांग्रेस के टिकट वितरण में ऐसे वर्ग और समाज को महत्व देखकर उन्हें फिर से साधने की कोशिश की जा सकती है।