- नरेश सोनी
खोदा पहाड़ और निकला मरा हुआ चूहा। भाजपा ने आचार संहिता लगने के चंद घंटों के भीतर ही प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी की। यह वही सूची थी जो पिछले दिनों सोशल मीडिया में खूब सुर्खियों में रही। जिस सूची को लेकर जमकर बवाल मचा और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष अरुण साव को सामने आकर कई बार कहना पड़ा कि यह पार्टी की अधिकृत सूची नहीं है। अब जब पहाड़ खुदने के बाद मरा हुआ चूहा निकल ही आया है तो इस पर कुछ चर्चा कर लें। भाजपा ने अगस्त महीने में जब पहली सूची जारी की थी तो दुर्ग जिले की इकलौती पाटन सीट से सांसद विजय बघेल को प्रत्याशी घोषित किया था। वह भी सीएम भूपेश बघेल के सामने। भाजपा के पास विजय बघेल के अलावा और कोई बड़ा चेहरा था भी नहीं। 2018 में रायपुर से मोतीलाल साहू को लाकर पाटन से टिकट दी गई थी। इस बार इन्हीं मोतीलाल साहू को रायपुर ग्रामीण से प्रत्याशी बनाया गया है। शायद साहू समाज की कड़ी चेतावनी का असर हो।
खैर, जिले की बाकी बची 5 सीटों की बात करते हैं। इन सीटों पर भाजपा ने प्रत्याशी उतारकर कार्यकर्ताओं का लम्बा इंतजार खत्म किया है। भिलाई नगर से प्रेमप्रकाश पाण्डेय की टिकट तय थी, सो उन्हें मिलनी ही थी। दावेदार बहुत थे, पर वरिष्ठता और भिलाई नगर क्षेत्र के रिकार्ड को देखते हुए उनके अलावा और कोई बेहतर प्रत्याशी हो नहीं सकता था। दुर्ग शहर से गजेन्द्र यादव को किस आधार पर प्रत्याशी बनाया गया, यह पार्टी को कार्यकर्ताओं को बताना होगा। वैसे भी, गजेन्द्र यादव की दुर्ग की राजनीति में भूमिका लगभग नगण्य रही है। अब जबकि पार्टी ने उन्हें क्षेत्र के दो गुटों की अनदेखी कर टिकट दी है तो सवाल यह उठेगा कि गजेन्द्र को चुनाव जितवाने की जिम्मेदारी कौन लेगा? गजेन्द्र यादव, आरएसएस छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रमुख बिसराराम यादव के पुत्र हैं। यह टिकट सिर्फ संघ पृष्ठभूमि के चलते मिली है, जैसा कि पार्टी के कई सीनियर नेताओं ने पहले कहा था। गजेन्द्र के सामने कांग्रेस के कद्दावर नेता अरुण वोरा होंगे, जो पिछले दो चुनाव से लगातार जीत हासिल कर रहे हैं। वे इस बार चुनाव लडऩे से पहले ही आश्वस्त हो सकते हैं। पिछली दफा यहां से भाजपा ने महापौर चंद्रिका चंद्राकर को प्रत्याशी बनाया था।
युवा नेता ललित चंद्राकर दुर्ग ग्रामीण क्षेत्र से 2018 में भी दावेदार थे, लेकिन सामाजिक लामबंदी के चलते उन्हें टिकट नहीं मिल पाई थी। इस बार दी गई है, लेकिन उनके सामने ताम्रध्वज साहू जैसा बड़ा और प्रभावशाली विरोधी होगा। जाहिर है कि यहां भी चुनौतियां बड़ी है। ललित, इस क्षेत्र में लम्बे समय से सक्रिय हैं। अहिवारा क्षेत्र की बात करें तो यहां से पूर्व विधायक डोमनलाल कोर्सेवाड़ा सबसे योग्य प्रत्याशी थे। वे सीनियर भी हैं। उन्हें टिकट देकर भाजपा ने संदेश देने की कोशिश की है कि अब जिले के बड़े नेताओं को गुटबाजी से बाज आना चाहिए। गुटबाजी के ही चलते एक बार उनकी टिकट काट दी गई थी। इस क्षेत्र के वर्तमान कांग्रेस विधायक रूद्र कुमार गुरू ने नवागढ़ क्षेत्र से टिकट मांगी थी। पार्टी उन्हें कहां से टिकट देती है, यह तो जल्द ही पता चलेगा, लेकिन क्षेत्र में उनकी छवि अच्छी नहीं रही है। ऐसे में भाजपा को इसका लाभ जरूर मिलेगा। रूद्र कुमार गुरू, प्रदेश सरकार में केबिनेट मंत्री हैं। वैशाली नगर से रिकेश सेन युवा चेहरा हैं। पार्टी को यहां ऐसे ही चेहरे की दरकार भी थी। वे अभी युवा हैं, लेकिन 5 बार पार्षद निर्वाचित हुए हैं। वह भी अलग-अलग वार्डों से। शायद यही खूबी उनको टिकट दिए जाने का आधार बनी हो। वैशाली नगर को भाजपा का गढ़ माना जाता है। फिर भी चुनाव जीतने के लिए रिकेश को मेहनत तो करनी ही होगी।

भाजपा ने दुर्ग जिले की सभी 6 सीटों पर अपने पत्ते तो खोल दिए हैं, लेकिन यहां भी पहाड़ खुदने के बाद मरा हुआ चूहा निकलने वाली बात है। लेकिन इन नामों को घोषित करने के पीछे एक स्याह अंधेरा भी है। दरअसल, कुछ महीनों पहले जब पार्टी ने टिकट वितरण की कवायद शुरू की तो शीर्ष नेताओं को यहां सिर्फ नेता ही नेता नजर आए। हर कोई नेता था। ज्यादातर बुढ़ाते हुए नेता। भविष्य के हिसाब से पार्टी को नए और ऊर्जावान चेहरों की जरूरत थी, लेकिन 15 साल की सत्ता के बाद भी यहां दूसरी पंक्ति तैयार ही नहीं की गई। ऐसे में जरूरी था कि छत्तीसगढ़ में बूढ़ी होती भाजपा को नए सिरे से खड़ा किया जाए। जिन नए और युवा चेहरों पर पार्टी ने दाँव लगाया है, भले ही वे इस बार जीत हासिल करने में कामयाब न हों, लेकिन वे दूसरी पंक्ति के नेता जरूर कहाएंगे। आगे चलकर इन्हीं पर पार्टी-संगठन का भार होगा। इस लिहाज से भाजपा यदि प्रदेश में सरकार नहीं भी बना पाए तो भी वह अपने इन बड़े और साहसिक कदमों पर संतोष व्यक्त कर सकती है। अलबत्ता, भाजपा की महिलाओं को पार्टी का टिकट वितरण जरूर चिंतित और परेशान कर सकता है, क्योंकि जिले की 6 सीटों में से महिलाओं को एक भी टिकट नहीं दिया गया है। जिस पार्टी ने संसद के दोनों सदनों में महिला आरक्षण बिल पारित कराया हो, उसने पहली सूची में महज आधा दर्जन और दूसरी सूची में 9 महिलाओं को टिकट दी है। अब तक घोषित कुल 85 उम्मीदवारों में से महज 15।
भाजपा की दोनों सूचियों को देखने के बाद कोई भी कह सकता है कि ऐसे प्रत्याशियों को लेकर सरकार बनाने के ख्वाब बुनने का काम भाजपा जैसी पार्टी ही कर सकती है। अभी नतीजों पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। ..और फिर कांग्रेस की सूची भी अब तक नहीं आई है। ऐसे में समीक्षा या विश्लेषण को एकतरफा ही कहा जाएगा। लेकिन यह देखना भी अहम् है कि कांग्रेस के पास कुल 72 विधायक हैं। कुछ के टिकट कटेंगे, पर ज्यादातर विधायक चुनाव लड़ेंगे। इसलिए तराजू के पलड़े पर किसका वजन ज्यादा है, यह बताना ज्यादा मुश्किल नहीं है।
(लेखक दुर्ग जिले के सीनियर पत्रकार हैं।)




