-दीपक रंजन दास
वायनाड सांसद और कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने आखिरकार राजनीति की दिशा और दशा तय कर ही दी। राहुल की पदयात्रा का मजाक बनाने वाली भाजपा ने पहले जहां यात्राएं निकालनी शुरू कीं वहीं अब वह टिफिन पालीटिक्स की तरफ झुक गई है। इसमें भाजपा के बड़े नेता सभी समाज के लोगों के साथ मिलेंगे और उनके साथ भोजन करेंगे। उद्देश्य होगा उनकी बातों को सुनना, उनकी आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को करीब से समझना। राहुल पिछले कई वर्षों से ऐन ऐसा ही कर रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी उनका पूरा फोकस लोगों से मिलने, उनकी बातें सुनने और उनकी जरूरतों का पता लगाने पर रहा है। वे जहां भी जाते हैं, जिसके भी घर में बैठते हैं, उनके साथ उनका ही भोजन करते हैं। भाजपा भी अब भोजन पर चर्चा करने को उतावली है। मध्यप्रदेश में भाजपा के बड़े नेता, जिनमें प्रदेश अध्यक्ष भी शामिल हैं ने टिफिन पालीटिक्स की शुरुआत की। वे अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ जमीन पर बैठकर भोजन करने लगे हैं। कई तस्वीरों में वे अपने हाथों से लोगों को भोजन परोसते हुए भी दिखाई दे रहे हैं। देखते ही देखते यह परिपाटी प्रदेश के कई जिलों और पड़ोसी राज्यों तक फैल गई। इसका प्रमुख उद्देश्य है कार्यकर्ताओं के बीच भाईचारा स्थापित करना तथा उनके करीब जाना। चुनावों के दौरान सबसे ज्यादा मुश्किल कार्यकर्ताओं को अपने साथ बनाए रखना होता है। टिकट वितरण होते ही लगभग सभी दलों में फूफाजी पैदा हो जाते हैं। कुछ बगावत कर बैठते हैं तो अधिकांश लोग चुप्पी साधकर घर बैठ जाते हैं। कुछ लोग ऊपर से तो साथ नजर आते हैं पर दरअसल, गुपचुप भितरघात की तैयारी कर रहे होते हैं। पार्टी को उम्मीद है कि साथ बैठकर भोजन करने से आपसी मनमुटाव और तल्खी को समय पर सुलझाया जा सकेगा। पर छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं को जो निर्देश मिले हैं, वो इससे आगे तक जाते हैं। पिछली बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय नेता अमित शाह ने दो टूक कहा है कि सभी समाज के लोगों के साथ संबंध जोडऩे हैं। उनके साथ मिलना बैठना है। साथ-साथ भोजन करना है। इस दौरान उनसे खुल कर बातें करनी है और उनके मन की थाह पाना है। साथ ही उन्हें विभिन्न मुद्दों पर पार्टी के दृष्टिकोण से अवगत कराते हुए उनका समर्थन हासिल करना है। इसके अलावा भाजपा द्वारा बनाए गए आरोपपत्र के मुद्दों को उनके सामने रखना है और भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस को घेरने की कोशिश करनी है। अब तक यही माना जाता रहा है कि भाजपा के पास अपना एक एजेंडा है जिसे पूरा करने के लिए वह विपक्ष मुक्त भारत की कल्पना करती है। बुनियादी तौर पर वह आरक्षण के भी खिलाफ है। पर केन्द्र में अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करने से पहले ही उसे समझ में आ गया है कि लोकतंत्र में ऐसा नहीं चलता।
Gustakhi Maaf: आखिर राहुल ने तय कर दी राजनीति की दिशा




