-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ में 2023 के पहले आठ महीनों में 9200 सड़क हादसे हुए हैं. इन हादसों में 4172 लोगों की मौतें हुई हैं. इनमें भी सबसे ज्यादा हादसे दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे के बीच हुए हैं. राजधानी रायपुर की बात करें तो यहां शहर की आउटर एरिया की सड़कों पर सबसे ज्यादा हादसे हुए हैं. इनमें से अधिकांश सड़कें राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की हैं. पुलिस का कहना है कि रायपुर में चारों दिशाओं से लोगों का आना जाना होता है जिसके कारण यहां यातायात का दबाव सबसे ज्यादा है. पुलिस ने कुछ सड़कों को खतरनाक घोषित करते हुए ब्लैक स्पॉट घोषित किये हैं. ये वो जगहें हैं जहां सबसे ज्यादा हादसे हुए हैं. ब्लैक स्पॉट समय के साथ बदलते रहते हैं. सड़क हादसों के लिहाज से टॉप-10 शहरों में रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, रायगढ़, कोरबा, बलौदाबाजार, राजनांदगांव, जगदलपुर, जांजगीर चांपा, महासमुंद आते हैं. सबसे कम हादसे नारायणपुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, मोहला मानपुर, बीजापुर, गौरेला-पेंड्रा, सक्ती, सारगंढ-बिलाईगढ़, मनेंद्रगढ़-चिरमिरी जिलों में हुए हैं. जाहिर है कि सड़के खतरनाक नहीं हैं. सड़कें खतरनाक हो ही नहीं सकतीं. उन पर चलने वाले जरूर लापरवाह और खतरनाक हो सकते हैं. सुबह-सुबह जब लोग फ्रेश मूड में घर से निकलते हैं तब भी दफ्तर जाने वालों, स्कूल-कालेज जाने वालों, दुकान खोलने के लिए जाने वालों की अच्छी खासी भीड़ सड़कों पर होती है. पर तब हादसे बहुत कम होते हैं. जैसे-जैसे दिन चढ़ते जाता है, लोगों का दिमाग गर्म होने लगता है. कोई गुस्से में तो कोई चिड़चिड़ेपन में गाड़ी चला रहा होता है. इसके साथ ही बढ़ने लगते हैं सड़क हादसे. यह सिलसिला संध्या 6 से 8 बजे तक चलता है. 9 बजे के बाद हादसे बहुत कम होते हैं. जाहिर है कि तनाव इन हादसों का सबसे बड़ा कारण है. इसलिए सड़कों को दोष नहीं देना चाहिए. इसीलिए सड़कों की छाती पर ब्रेकर उगाए जाने का भी कोई विशेष लाभ नहीं मिलता. दरअसल, दोपहर के इस वक्त को वैसे भी सेकंड हाफ कहा जाता है. फर्स्ट हाफ के चार-पांच घंटे योजनाबद्ध ढंग से काम होते हैं. सेकंड हाफ के दो-तीन घंटों में काम-काज के लटकने और टलने का खतरा बढ़ता चला जाता है. यहीं से हड़बड़ी शुरू होती है. झटपट काम निपटाने के चक्कर में लोग नो एंट्री में घुस जाते हैं, कहीं भी गाड़ी खड़ी करने लगते हैं, जबरदस्ती ओवरटेक करते हैं. सामने कोई ठेला या साइकिल भी आ गया तो दांत पीसने लगते हैं. यह भी एक कारण है कि संभाग मुख्यालयों और जिला मुख्यालयों में सड़के हादसे ज्यादा होते हैं. सड़क हादसों के लिए ट्रैफिक पुलिस भी कम जिम्मेदार नहीं है. बेशक वह खूब चालान करती है और सरकार का खजाना भी भरती है पर खतरनाक चालकों पर नकेल कसने में वह असमर्थ रही है. यही वो चालक हैं जो न केवल अपनी बल्कि सड़क पर चलने वाले दूसरों की जान को जोखिम में डालते हैं.
Gustakhi Maaf: दोपहर तक पगला जाते हैं लोग, बढ़ते हैं सड़क हादसे
