-दीपक रंजन दास
भारतीय जनता पार्टी देश भर में एक चेहरे पर चुनाव लड़ती है. वह चेहरा है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का. यह चेहरा इतना बड़ा है कि उसके आगे पक्ष-विपक्ष का कोई नेता टिक नहीं पाता. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए भी भाजपा की मुख्य रणनीति केन्द्र सरकार और केन्द्रीय नीतियां ही हैं. छत्तीसगढ़ में 15 साल की सत्ता के बाद हुई पार्टी की दुर्गति को केन्द्रीय नेतृत्व पचा नहीं पाया है. पर कुशल नेतृत्व वह होता है जो अपनी कमजोरियों को पहचान कर उसका इलाज ढूंढता है. जिस तरह देश का केवल एक ही नेता, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं, ठीक उसी तरह छत्तीसगढ़ में सरकार का एकमात्र चेहरा मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ही थे. 2018 के चुनावों में अपमानजनक पराजय के बाद उनके चेहरे की चमक जाती रही है. पर मुश्किल यह है कि उनके कार्यकाल में भाजपा के तत्कालीन सभी कद्दावर नेताओं को निपटा दिया गया था. पार्टी के पास प्रदेश भर में दिखाने के लिए आज भी वही एक चेहरा है जिसे वह दिखाना नहीं चाहती. संगठन में लगातार उलटफेर कर पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने नए चेहरों को उभारने की कोशिश की पर उसका कोई खास फायदा नहीं मिला. ये चेहरे इतने नए थे और वक्त इतना कम था कि उन्हें स्थापित नहीं किया जा सका. और अब जबकि विधानसभा के चुनावों को कुछ ही महीने रह गए हैं वह नए रिस्क नहीं लेना चाहती. इसलिए “एक नेता” वाली पार्टी ने छत्तीसगढ़ में “त्रिशूल” की रणनीति बनाई है. पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के समानान्तर पार्टी ने दो और नियुक्तियां कर दी हैं. राज्यसभा सांसद सरोज पांडे और पूर्व मंत्री लता उसेंडी को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्याक्ष बना दिया गया है. छत्तीसगढ़ जैसे छोटे से राज्य में तीन-तीन राष्ट्रीय उपाध्यक्षों की नियुक्ति के पीछे भी यही उद्देश्य झलकता है. सरोज और लता अलग-अलग वजहों से प्रदेश की राजनीति में चर्चित हैं. छत्तीसगढ़ की स्थिति संभालने के लिए सरोज को राष्ट्रीय महासचिव के पद की कुर्बानी देनी पड़ी. उधर, बस्तर साधने के लिए पार्टी को जिस आदिवासी महिला चेहरे की जरूरत थी, उसे उसेंडी ने पूरा कर दिया. ये तीनों उपाध्यक्ष अब अपने-अपने ढंग से प्रदेश की राजनीतिक फिज़ा को बदलने की कोशिश करेंगे. सरोज इन तीनों में सबसे ज्यादा तेज तर्रार मानी जाती हैं. इसकी वजह भी है. डॉ रमन सिंह और लता उसेंडी ने जहां पार्षद के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की वहीं सरोज ने सीधे महापौर के रूप में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया. एक ही समय पर महापौर, विधायक और सांसद रहने का रिकार्ड उनके नाम है. 2018 के विधानसभा चुनावों को लेकर वे पहले भी कह चुकी हैं कि जो बात कार्यकर्ताओं को पता थी, उसे नेता नहीं भांप पाए. इसके बाद पार्टी ने भी कहा कि इस बार प्रत्याशी कार्यकर्ताओं से पूछ कर ही तय किये जाएंगे. जाहिर है, सरोज की संगठन से सत्ता में वापसी की तैयारी है.