-दीपक रंजन दास
नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी का एक और मामला उजागर हुआ है. इस बार मंत्रालय में तगड़ी सेटिंग का दावा कर एक शख्स ने नौकरी लगवाने का झांसा दिया. 13 नौकरी आकांक्षियों से उसने 70 लाख रुपए ठग लिये. ठगी का शिकार हुए लोगों को भोला-भाला कहना ठीक नहीं होगा. ये वो डेढ़ होशियार टाइप के लोग हैं जो सरकारी नौकरी खरीदने की इच्छा रखते हैं, योग्य लोगों का हक छीनना चाहते हैं. ऐसे लोग पिछले दरवाजे से एंट्री करने की फिराक में रहते हैं. इसी चोर दरवाजे का फायदा उठाकर ठग आते हैं और अपना काम पूरी सफाई के साथ करके निकल जाते हैं. इस मामले में जब आरोपी का खाता टटोला गया तो उसमें केवल 450 रुपए मिले. दरअसल, जो लोग ठगे जाने के लिए तैयार बैठे हैं, उनका ठगों से पाला पडऩा केवल वक्त की बात होती है. नौकरी के नाम पर ठगी का यह कोई पहला मामला नहीं है. साल दर साल ऐसे मामलों में वृद्धि हो रही है. कभी बीएसपी में नौकरी लगवाने का दावा करने वालों का भी अच्छा खासा रैकेट हुआ करता था. जेओटी, एसओटी लगवाने के नाम पर ठग 100-200 लोगों से 25-25, 30-30 हजार रुपए ले लेते थे. जिनकी नौकरी अपने-आप लग जाती थी, उनके पैसे हजम कर लेते थे और बाकी लोगों के पैसे थोड़ा बहुत घुमा फिराकर लौटा देते थे. ऐसे मामले जब पुलिस के पास पहुंचते हैं तो पुलिस पहले तो उन्हीं की लानत-मलामत करती है. पूछती है कि क्या पुलिस से पूछकर दिये थे पैसे? वैसे पुलिस चाहे तो ऐसे प्रार्थियों को गिरफ्तार भी कर सकती है. जिस तरह देश में रिश्वत लेना जुर्म है, ठीक उसी तरह रिश्वत देना भी अपराध की श्रेणी में आता है. ऊपर से ये मामले किसी मजबूरी से नहीं बल्कि लालच से जुड़े हुए हैं. वैसे भी जिन लोगों ने पैसे दिये, उन लोगों ने एक बार भी नहीं सोचा कि जो आदमी खुद बेरोजगार है वह दूसरों की नौकरी कैसे लगवा सकता है. यही गलती हम उस समय भी करते हैं जब फुटपाथ पर बैठे बाबा से अपनी किस्मत बदलने के यंत्र खरीदते हैं. कुछ समय पहले तक प्रत्येक कचहरी प्रांगण में ऐसे लोगों का पसरा लगा होता था जो मुकदमा जीतने का टोटका बेचा करते थे. कोई हाथ देखकर, तो कोई माथा देखकर ग्रह दोषों की विवेचना कर देता था. उसे ठीक करने के लिए लाल-नीले-हरे-पीले-चितकबरे पत्थर बेच देता था. रुद्राक्ष की माला के साथ ही वह एक मंत्र भी दे देता था जिसका जाप करने पर मुकदमा जीतने की गारंटी होती थी. फिलहाल, चुनाव पूर्व का मौसम चल रहा है. सभी दल आंकड़े गिना रहे हैं. जनता के पास सही आंकड़े जानने के साधन तो हैं पर वह मेहनत नहीं करना चाहती. अपनी-अपनी पसंद के नेताओं की बात पर यकीन कर लेती है. ठगा जाना उसे अच्छा लगता है. फिर ठगी से तकलीफ कैसी.
Gustakhi Maaf: दुकान लगाकर बैठोगे तो ग्राहक तो आएंगे ही
