-दीपक रंजन दास
भाजपा में दूसरे नंबर के कद्दावर राष्ट्रीय नेता और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह कल दुर्ग में होंगे। मोटा भाई (गुजराती में बड़े भाई) के नाम से बेहतर जाने जाने वाले शाह का कल का दौरा राज्य में भाजपा की राजनीति को नई दिशा दे सकता है। कल शाह को दुर्ग में डेढ़-दो दशक पहले का नजारा देखने को मिलेगा। इस सदी का वह आरंभिक दौर था। दुर्ग से एक महिला नेतृत्व उभर रहा था। सरोज पाण्डेय दुर्ग की पहली महिला महापौर चुनी गई थीं। इसके बाद इस पुरातन शहर का हुलिया तेजी से बदलने लगा। सड़कें चौड़ी हो रही थीं, बाग-बगीचों का सौंदर्यीकरण हो रहा था। शहर में हो रहे इस सुखद परिवर्तन को स्थानीय निवासियों के साथ ही यहां आने वाले आगंतुक भी महसूस कर रहे थे। यही कारण रहा कि सरोज को लगातार दूसरी बार भी शहर ने महापौर चुना। इस बीच सीमांकन के कारण भिलाई का वैशालीनगर एक नया विधानसभा क्षेत्र बन गया। इसका पहला चुनाव हुआ तो सरोज पाण्डेय को यहां से मौका दिया गया। भाजपा प्रत्याशी के रूप में उन्होंने यहां से भी जीत दर्ज की और पहली बार विधानसभा में कदम रखा। इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें भाजपा ने दुर्ग से प्रत्याशी बनाया और वे लोकसभा पहुंच गईं। एक ही समय पर महापौर, विधायक और सांसद रहने का जो रिकार्ड उन्होंने बनाया वह गिनीज बुक में दर्ज हो गया। उन्हें भाजपा महिला मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव का दायित्व भी सौंपा गया। अब वे राज्यसभा में सांसद हैं। यह भी एक संयोग ही है कि मोटा भाई का दुर्ग दौरा और सरोज पांडे का जन्मदिन एक ही दिन, अर्थात 22 जून को है। इधर छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव सिर पर हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी मुख्यमंत्री का चेहरा, या यूं कहें कि इस चुनाव का नेतृत्व करने वाला चेहरा देने में अब तक नाकाम रही है। 22 जून का दिन इस मामले में अहम सिद्ध हो सकता है। लगातार केन्द्र की राजनीति में रहने के बावजूद सरोज पांडे को उनका शहर दुर्ग अभी भूला नहीं है। पूरा शहर उन्हें जन्मदिन की बधाई देने को उतावला हो रहा है। चौक-चौराहे, होर्डिंग सब बधाई संदेशों से पट गए हैं। मोटा भाई के लिए यह एक सुखद अनुभूति हो सकती है। छत्तीसगढ़ में भाजपा के चेहरे की उनकी तलाश खत्म हो सकती है। किसी भी महिला के लिए राजनीति की डगर आसान नहीं होती। तमाम मुश्किलें रास्ते में आती हैं पर जो अविचल रहकर अपनी यात्रा को जारी रखते हैं वो ही किसी मुकाम तक पहुंचते हैं। इस बीच उनसे गलतियां भी हुईं और उसकी सजा भी मिली। पर जो लोग अपनी गलतियों से सीखकर आगे बढ़ जाते हैं, कदाचित वो ही इतिहास रचते हैं। वे संघ के उस फॉर्मूले पर भी फिट बैठती हैं जिसमें गृहस्थ आश्रम को वंशवाद की जड़ माना जाता है।
Gustakhi Maaf: क्या खत्म होगी भाजपा में चेहरे की तलाश?
