-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा जारी 10वीं और 12वीं के बोर्ड रिजल्ट ने आत्मानंद स्कूलों की उत्कृष्टता पर मुहर लगा दी है. प्रावीण्य सूची में आने वाले विद्यार्थी या तो स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों से हैं या फिर विशेष शालाओं से। दिलचस्प यह भी है कि प्रदेश का आदिवासी एवं नक्सल प्रभावित इलाकों से ही सबसे अच्छे परिणाम सामने आए हैं। प्रतिशत में बात करें तो सुकमा के 94.47, जशपुर के 94.06, दंतेवाड़ा के 91.9, कांकेर के 91.47 और जगदलपुर के 88.46 प्रतिशत विद्यार्थियों ने 10वीं बोर्ड परीक्षा में बाजी मारी है। वहीं 12वी में भी इन जिलों का बेहतरीन प्रदर्शन रहा है। जशपुर के 95.37, सुकमा के 93.96, दंतेवाड़ा के 92.24, कांकेर के 90.32 और बीजापुर के 89.78 प्रतिशत परीक्षार्थी 12वीं की परीक्षा में सफल रहे हैं। आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों की बात करें तो 12वीं की मेरिट लिस्ट में 05 और 10वीं की मेरिट लिस्ट में यहां के 10 विद्यार्थियों ने जगह बनाई है। उल्लेखनीय यह भी है कि 10वीं में कुल 48 टापरों में आदिवासी क्षेत्रों से 19 परीक्षार्थी हैं। वहीं 12वीं में 30 टापरों में दो आदिवासी इलाकों के हैं। इन नतीजों को देखकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले दो बातों को ध्यान में रखना जरूरी है। प्रदेश की शिक्षाधानी भिलाई को मूलत: सीबीएसई स्कूलों के लिए जाना जाता है। रायपुर और बिलासपुर भी इसी राह पर हैं। एक और कारण भी है। पिछले लगभग एक दशक में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की तरफ शहरी विद्यार्थियों का रूझान बढ़ा है। अधिकांश बच्चे किसी न किसी प्रतियोगिता परीक्षा की पढ़ाई साथ-साथ कर रहे होते हैं। इसका भी असर परीक्षाओं के प्राप्तांक पर पड़ता है। इस चूहा दौड़ में शामिल शहरी क्षेत्र के विद्यार्थी भीषण मानसिक प्रताडऩा के दौर से भी गुजर रहे हैं। 5-6 घंटे का स्कूल और 6 से 8 घंटे की कोचिंग के बाद अधिकांश विद्यार्थी लस्त पड़ जाते हैं। परीक्षाओं के समय यह दबाव और बढ़ जाता है। इसका विपरीत असर उनकी स्वाभाविक क्षमताओं पर पड़ता है। खेलकूद और मनोरंजन से कटे हुए ये बच्चे वैसे भी फास्ट फूड पर जिंदा हैं। जबकि आदिवासी अंचल के बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से ज्यादा फिट पाए गए हैं। अब तक उनके पास सुविधा नहीं थी, इसलिए वे हाशिए पर थे। अब जबकि अच्छी सुविधा से युक्त विद्यालय और शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित कर दी गई है तो उन्हें आगे बढऩे से कोई रोक नहीं सकता। 10 साल बाद यदि यही विद्यार्थी पीएससी की परीक्षा पास कर सर्वाधिक संख्या में राज्य की प्रशासिक सेवा का हिस्सा बन गए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे भी स्टेट बोर्ड के विद्यार्थी वैसे भी अपने राज्य के बारे में ज्यादा जानकारी रखते हैं, उससे ज्यादा जुड़े हुए होते हैं। जरूरत है तो बस इन्हें व्यावसायिक कोचिंग संस्थानों से बचाए रखने की। भिलाई के महाविद्यालय इन कोचिंग संस्थानों को प्रमोट करने का खामियाजा भुगत ही रहे हैं।
Gustakhi Maaf: आत्मानंद स्कूलों की उत्कृष्टता पर लगी मुहर
