-दीपक रंजन दास
स्वामी विवेकानंद को आज दुनिया याद करती है। उन्होंने 39 वर्ष की अल्पायु में ही दुनिया को अलविदा कह दिया था। कुछ ऐसे ही थे राजनांदगांव रियासत के अंतिम शासक राज महंत दिग्विजय दास वैष्णव। उन्होंने 25 वर्ष की आयु में शरीर त्याग दिया। पर इससे पहले वह इतना कुछ कर गए कि राजनांदगांव जिला आज भी उनका ऋणी है। राजा दिग्विजय ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के एक पब्लिक स्कूल से प्राप्त की। इसके बाद दार्जीलिंग और रायपुर के राजकुमार कालेज से अपनी शिक्षा पूरी की। उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड गए। जब लौटे तो उनकी आंखों में जनता को सुशिक्षित करने का सपना था। उद्योग लगाकर लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने का जज्बा था। खेलकूद को बढ़ावा देकर अवाम में सकारात्मक ऊर्जा भरने का संकल्प था। उन्होंने अपना महल और 1800 एकड़ भूमि उच्च शिक्षा के लिए दान कर दी। अपने निजी पुस्तकालय का एक हिस्सा भी महाविद्यालय को दे दिया। आज भी दिग्विजय महाविद्यालय की गिनती अंचल के श्रेष्ठ महाविद्यालयों में होती है। अपने पिता राजा सर्वेश्वरदयाल के नाम पर उन्होंने एक हाईस्कूल भी खोला जिसकी गिनती शहर के प्रमुख स्कूलों में होती है। खेलकूद के विकास के लिए उन्होंने स्टेडियम के लिए जमीन दान कर दी। उन्होंने लालबाग क्लब की स्थापना की और अखिल भारतीय हॉकी संघ के संस्थापक अध्यक्ष बने। यहां ऑल इंडिया हॉकी टूर्नामेंट का आयोजन किया जिसमें हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद भी पहुंचे। राजनांदगांव का हाकी स्टेडियम उनके ही नाम पर है। उन्होंने राजनांदगांव में पहला कारखाना बंगाल-नागपुर कॉटन मिल स्थापित किया। यहां बनी मच्छरदानियां पूरे विश्व में प्रसिद्ध थीं। इसमें 4000 लोगों को रोजगार मिला हुआ था। 25 अप्रैल को उनकी जयंती थी जो इक्का दुक्का श्रद्धांजलि सभाओं तक सिमट कर रह गई। हम बस इतना ही प्यार करते हैं उनसे जो हमारे लिए अपना सबकुछ लुटा कर चले जाते हैं। शेष छत्तीसगढ़ को छोड़ भी दें तो खुद राजनांदगांव के अधिकांश लोग इससे अनभिज्ञ हैं। यह कोई बहुत पुरानी बात भी नहीं है। राजा दिग्विजय सिंह का जन्म 1933 में 25 अप्रैल को हुआ और 22 जनवरी 1958 को उनका देहांत हो गया। 90 साल का इतिहास हमें याद नहीं और बहस सैकड़ों साल के इतिहास पर करते हैं। यही देश की सबसे बड़ी विडम्बना है। अंग्रेजी शिक्षा पद्धति ने कभी भी इतिहास शिक्षण पर जोर नहीं दिया। इससे उन्हें कोई मतलब भी नहीं था। जिस कौम को अपना इतिहास याद होता है उसमें राष्ट्रभक्ति की भावना भी देर सबेर जाग ही जाती है। आजादी के बाद देश तेजी से साथ औद्योगीकरण की ओर बढ़ा और विज्ञान की शिक्षा अपने आप सर्वोच्च पायदान पर जा बैठी। इतिहास और भाषा जैसे विषय हाशिए पर चले गए। कुछ गिनती के राज्यों में ही इन दोयम दर्जे के विषयों को गंभीरता से लिया जाता है। इसीलिए जब कोई कहता है – कौआ कान ले गया तो हम उसने मारने दौड़ते हैं।
Gustakhi Maaf: अल्पायु में इतिहास रचने वाले दिग्विजय
