-दीपक रंजन दास
गांव और शहर से समान रूप से जुड़ा होने का बड़ा लाभ होता है. गांव वाला जानता है कि असली खुशी परिवार के साथ बैठकर भोजन करने, नींद पूरी कर सुबह उठने और खुशी-खुशी दिन भर का कामकाज निपटाने में है. इसमें उमंग है, संतुष्टि है, खुशहाली है. वरना बावरे मन का क्या? गांव वाले के पास पैसा होगा तो वह शहर भी जाएगा और खरीदारी भी करेगा. गांव वालों के हाथ में पैसा होगा तो छोटी-मोटी दुकानें भी चलेंगी और ऑटोमोबाइल, रियल एस्टेट जैसे व्यवसाय भी पनपेंगे. छत्तीसगढ़ की लगभग 77 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है. इसके मुकाबले गिनती के शहर हैं. गांव इस राज्य का पेट है जिसे ठीक करना जरूरी है. आयुर्वेद भी यही कहता है. 80 फीसदी रोगों की जड़ें पेट में छिपी होती हैं. पेट को स्वस्थ कर दो, बीमारियां जड़ से नष्ट हो जाएंगी. गांव में पैसा पहुंचेगा तो वह शहर तक भी अपने आप आ जाएगा. पिछले चार साल में सरकार ने यही किया है. 2017-18 में जहां 56.88 लाख टन धान की खरीदी की गई थी वहीं 2021-22 में 98 लाख टन धान की खरीदी की गई. 2018 में सरकार ने धान की खरीदी पर बोनस देना भी प्रारंभ कर दिया. इस बीच किसानों की संख्या भी बढ़ी. 2017-18 में जहां 1.19 लाख किसान पंजीकृत थे वहीं 2022-23 में पंजीकृत किसानों की संख्या 2.3 लाख थी. जारी वर्ष में यह संख्या बढ़कर 24.96 लाख हो गई है. जारी सीजन में सरकार अब तक 22 लाख से ज्यादा किसानों से एक करोड़ टन से भी ज्यादा धान खरीद चुकी है. इसके ऐवज में सरकार 21 हजार करोड़ रुपए का भुगतान कर चुकी है. पिछले चार साल में सरकार ने किसानों को डेढ़ लाख करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान अकेले धान के ऐवज में किया है. इसके अलावा गोधन न्याय योजना से पुष्ट होती आर्गेनिक खेती, उद्यानिकी आदि फुटकर व्यवसाय से किसानों को प्राप्त होने वाली आय अलग है. गांवों की खुशहाली से जीएसटी कलेक्शन भी बढ़ा है. 2020-21 में जीएसटी कलेक्शन 1,832 करोड़ रुपए था जो 2021-22 में 2,432 करोड़ तक जा पहुंचा. दरअसल, जो बात महात्मा गांधी से लेकर नोबल विजेता प्रो. अमर्त्य सेन और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह समझ चुके थे, उसे कभी ठीक से लागू नहीं किया जा सका. इसकी वजह शायद यह थी कि ये योजनाएं केन्द्र में बनती थीं जिसपर ठीक से अमल नहीं हो पाता था. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी कह चुके थे कि गरीबों के लिए जारी पैसे का एक प्रतिशत भी उन तक नहीं पहुंचता. गांव वालों तक पैसा पहुंचाने का यह रास्ता किसान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खोज निकाला है. यही कारण है कि न केवल केन्द्र उनकी पीठ थपथपाता है बल्कि अन्य राज्य भी इसका अनुसरण कर रहे हैं. जाहिर है, जब मल्टी और सुपर स्पेशालिटी अस्पताल फेल हो जाते हैं तब काढ़ा ही काम आता है.
Gustakhi Maaf: भूपेश ने आजमाया आयुर्वेद का फार्मूला




