-दीपक रंजन दास
यह खेल बड़ा पुराना है. उपद्रव करना हो तो रैली, सभा पर पथराव करवा दो. पथराव प्रायोजित भी हो सकता है. पथराव वह भी करवा सकता है जिसने रैली या सभा का आयोजन किया हो. पथराव वह भी कर सकता है जिसे सभा या रैली पसंद न आ रही हो. पथराव उपद्रवी भी कर सकते हैं जिनका उद्देश्य केवल मजा लेना होता है. ऐसे लोगों ने ही वंदे भारत पर पथराव किया था. ऐसे लोगों को तोड़फोड़ करने और हंगामा खड़ा करने में मजा आता है. पर भिलाई के सुपेला स्थित गदा चौक पर जो हुआ वह साधारण समझ से परे है. भाजपा यहां सत्ता में नहीं है इसलिए उसके खिलाफ कोई आक्रोश भी नहीं है. रही बात कांग्रेस की तो वह पथराव कर भाजपा को टीआरपी लेने का मौका तो बिल्कुल भी नहीं देना चाहेगी. एक क्षीण सी संभावना बनती है कि भाजपा के एक नेता पिछले कुछ समय से राज्य के मुख्यमंत्री पर बेलगाम जुबानी हमले कर रहे हैं. वह इस सभा में उपस्थित थे. पर इसे लेकर कोई पथराव करेगा और वह भी प्रतीकात्मक, इसकी संभावना कम ही दिखती है. ऐसे लोगों को काले झंडे दिखाने का चलन रहा है. कांग्रेस में ऐसे मनचले नेता भी हुए हैं जो फ्लेक्स-पोस्टरों से झांकते चेहरों पर कालिख पोतते रहे हैं. पर यह सब इतिहास की बातें हैं. सुपेला का गदा चौक एक भीड़-भाड़ वाला इलाका है. पथराव करने वाले बड़े संवेदनशील निकले. उन्होंने 4-6 पत्थर ही फेंके. उन्होंने इस बात का खास ध्यान रखा कि किसी को चोट न आए. वरना मरहम पट्टी करवाकर लोग इलेक्ट्रानिक मीडिया को बाइट दे रहे होते. इस पथराव के बाद केवल इतना ही हो पाया कि पत्थर का एक टुकड़ा उठाकर भाजपा जिलाध्यक्ष कांग्रेस पर आरोप लगा पाए. दरअसल, पिछले कुछ समय से पथराव की राजनीति ने जोर पकड़ हुआ है. लोगों को गुस्सा तो टीवी पर आने वाले बेलगाम नेताओं पर आता है पर वे अपना ही टीवी सेट तो नहीं फोड़ सकते. लिहाजा भड़ास को कहीं और निकालते हैं. गुजरात में आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर पथराव का आरोप लगाया. पश्चिम बंगाल में भाजपा की बसों पर पथराव हुआ. कल इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रों ने पथराव कर दिया. अलीगढ़ में मस्जिद पर पथराव हुआ तो संभल में कांवड़ियों पर छत से पत्थर बरसाए गए. गालियां देना और पत्थर फेंकना कमजोरों का हथियार है. लोग यह रास्ता तब चुनते हैं जब किसी के खिलाफ उनका कोई जोर नहीं चलता. उसका मन तो करता है कि आगे बढ़े और वाही-तबाही बकने वाले का मुंह नोच ले, पर हालात उसका रास्ता रोकते हैं. ऐसे लोग भी पत्थर मार सकते हैं. पर वो निशाना लेकर पूरी ताकत से पत्थर फेंकते हैं. जो ऐसा कर पाते हैं वो या तो शहीद हो जाते हैं या फिर नेता बन जाते हैं. ऐसे बेकार में पत्थर कौन बरसाता है? तो क्या ये कंकड़ किसी गाड़ी के टायर से उछले थे?
गुस्ताखी माफ़: भीड़ पर पत्थर फेंकने की राजनीति




