-दीपक रंजन दास
लोकतंत्र में दिमाग भी दो तरह का होता है. एक जिसे सरकार की कोई गलती नहीं दिखाई देती और दूसरा प्रकार वह जिसे सरकार में कोई खूबी नजर नहीं आती. ऐसे लोगों के लिए भारत सरकार कुछ आंकड़े जारी करती है. ऐसा ही एक आंकड़ा सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम-एसआरएस जारी करता है. एसआरएस ने हाल ही में 2016 से 2018 के बीच छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सेवाओं में आए परिवर्तन के आंकड़े जारी किये हैं. इसके मुताबिक इन तीन वर्षों में छत्तीसगढ़ में मातृत्व मृत्यु दर 22 अंक गिरकर 137 पर पहुंच गई है. 2016 में प्रति एक लाख जीवित शिशुओं के जन्म पर 159 माताओं की मौत प्रसव के दौरान हुई थी. ये आंकड़े भारत के महापंजीयक कार्यालय द्वारा जारी किये जाते हैं. ये आंकड़े काफी कुछ कहते हैं. प्रत्यक्ष रूप से इसके लिए गर्भवतियों की देखभाल योजना के साथ ही दूरस्थ अंचलों तक बनी स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को श्रेय दिया जा सकता है. वहीं परोक्षा रूप से इसका श्रेय ग्रामीण छत्तीसगढ़ में आई खुशहाली को भी दिया जा सकता है. यह जीवन स्तर में हो रहे सुधार का भी द्योतक है. छत्तीसगढ़ की ग्रामोन्मुखी भूपेश बघेल सरकार के नेतृत्व में गर्भवती और शिशुवती महिलाओं के लिए सुपोषण अभियान चलाया जा रहा है. मातृत्व स्वास्थ्य की बेहतर देखभाल और गर्भवती व शिशुवती महिलाओं को हर तरह का इलाज मुहैया कराने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का लगातार सुदृढ़ीकरण किया गया है. ज्यादा जोखिम वाले गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की नियमित जांच और निगरानी की जा रही है. पिछले चार वर्षों में राज्य में संस्थागत प्रसवों की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी हुई है. शासकीय अस्पतालों में भी सिजेरियन प्रसव की सुविधाएं बढ़ी हैं. समुदाय और मैदानी स्तर पर मितानिनें और एएनएम मातृ व शिशु स्वास्थ्य पर लगातार नजर रख रही हैं. राज्य शासन के इन सब कदमों की वजह से प्रदेश में मातृत्व मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई है. तीन साल के छोटे से कालखंड को देखें तो यह उपलब्धि बहुत बड़ी नजर आती है पर इस मामले में दिल्ली अभी दूर है. देश में सबसे कम मातृत्व मृत्यु दर के आंकड़े केरल से आते हैं. केरल में प्रति एक लाख जीवित शिशु मातृत्व मृत्यु की दर महज 19 है. केरल भी छत्तीसगढ़ की तरह एक छोटा राज्य है पर वहां जनसंख्या का दबाव बहुत ज्यादा है. केरल में प्रति वर्ग किलोमीटर आबादी 859 है जबकि छत्तीसगढ़ में प्रति वर्ग किलोमीटर आबादी का घनत्व 189 है. इसके फायदे भी हैं और नुकसान भी. छत्तीसगढ़ को जहां इस बात का फायदा है कि उसे अपेक्षाकृत कम लोगों की देखभाल करनी है वहीं दूसरी तरफ इसका मतलब यह भी है कि छत्तीसगढ़ की आबादी दूर-दूर तक छितराई हुई है जिनतक पहुंचना एक कठिन कार्य है. आज भी वनवासी इलाकों से कांधे पर ढोए जाते मरीजों की तस्वीरें सामने आती रहती हैं. इन तक स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाने में वक्त तो लगेगा पर अच्छी बात यह है कि शुरुआत हो चुकी है. इन इलाकों के रहवासियों का जीवन स्तर उठाने की कोशिशें भी प्रारंभ हुई हैं जिसके अच्छे परिणाम आएंगे.
