-दीपक रंजन दास
पहले जहां यह माना जाता था गर्मियों में लोग जल्दी अपना आपा खो बैठते हैं और हत्याएं करते हैं वहीं पिछले कुछ दशकों में अपराधों के पैटर्न पर विश्व भर में हुए शोध बताते हैं कि ठंड के आरंभ और अंत के दिनों में हिंसा के सर्वाधिक अपराध होते हैं. इन दिनों में युवा जमकर पार्टी करते हैं और वहीं पर जघन्य अपराधों के बीज पड़ जाते हैं. शोध के निष्कर्ष पर विवाद हो सकता है पर इधर छत्तीसगढ़ से लेकर भारत के विभिन्न भागों से रेप और मर्डर की खबरें आने लगी हैं. छत्तीसगढ़ के भिलाई की बेटी 24 वर्षीय प्रियंका का सड़ रहा शव उसके बायफ्रेंड की कार से बरामद हुआ. उधर दिल्ली में श्रद्धा वालकर की हत्या उसके शादीशुदा प्रेमी ने गुस्से में कर दी. इसके बाद शव को ठिकाने लगाने के लिए उसके अनगिनत टुकड़े कर दिए. वहीं आजमगढ़ में एक सनकी आशिक ने अपनी गर्लफ्रेंड का कत्ल करके उसके पांच टुकड़े कर दिये. ग्वालियर के गोला का मंदिर इलाके से लापता 24 वर्षीय पूजा शर्मा को भी उसके आशिक ने मार डाला. मामले का खुलासा तब हुआ जब साइको किलर विक्रांत को राजस्थान पुलिस ने धर दबोचा. उसने कबूल किया कि अब तक वह तीन युवतियों को प्रेमजाल में फंसा कर उनकी हत्या कर चुका है. पिछले महीने भिलाई में ही एक शादीशुदा व्यक्ति ने अपनी प्रेमिका के साथ होटल के कमरे में फांसी लगा ली. इस तरह के दर्जनों मामले पूरे देश में सामने आए हैं. सबका यहां उल्लेख करना संभव नहीं है. ये मामले कानून व्यवस्था के नहीं है. डायबिटीज और मोटापा की तरह ये भी लाइफ स्टाइल डिजीज हैं. पार्टीबाजी, बॉयफ्रेंड, रिलेशनशिप, लिव इन के इस दौर में युवा बिना पतवार की नाव की तरह बह चले हैं. माता पिता का उनके जीवन में बहुत कम हस्तक्षेप रह गया है. श्रद्धा का ही मामला लें तो पिछले दो साल में वह दर्जनों बार पिट चुकी थी. विवाहित आशिक ने उसे कई बार जान से मारने की धमकी भी दी थी. मई में उसकी हत्या हो गई. नवम्बर में इसका खुलासा हुआ. बेटी की घरवालों से महीनों बात नहीं हुई थी. परिजन उसके सोशल मीडिया पोस्ट से इस भ्रम में थे कि वह जीवित है. भिलाई की स्टूडेंट प्रियंका के पास लाखों रुपए निवेश के लिए उपलब्ध थे. अब वह निवेश ही कर रही थी या आनलाइन सट्टा खेल रही थी, यह किसे पता. दरअसल, हम संवादहीनता के युग में जी रहे हैं. बच्चे पढ़ने के लिए बाहर क्या जाते हैं, माता पिता केवल फाइनेंसर बन कर रह जाते हैं. माताएं भी टोलियां बनाकर पार्टी बाजी में मस्त हैं और पिता भी पारिवारिक किचकिच से मुक्त होकर दोस्तों के बीच मस्त हैं. रिश्तों की डोर टूट चुकी है और बच्चे कटी पतंग की तरह हवा में कलाबाजियां खा रहे हैं. अभी मामले उंगलियों पर गिने जा सकते हैं. अपसंस्कृति नहीं रुकी तो धीरे धीरे ऐसे मामले भी सिंगल कॉलम समाचार बन कर रह जाएंगे.