-दीपक रंजन दास
आस्था और विश्वास में इतनी ताकत होती है कि कभी-कभी असंभव भी संभव हो जाता है. दीपावली के बाद के प्रथम शुक्रवार को धमतरी जिले के मां अंगारमोती मंदिर में मंडई मेले का आयोजन किया गया. 1972 में मंदिर की स्थापना के बाद से ही यह परम्परा चली आ रही है. मंडई में गंगरेल बांध के डुबान क्षेत्र के 52 गांवों के देवता पहुंचते हैं. इसके साथ ही पहुंचते हैं हजारों श्रद्धालु. मान्यता है कि इस दिन बैगा पर माता की सवारी होती है. संतान की कामना के साथ महिलाएं उपवास रखती हैं और फिर नारियल लेकर मंदिर के आगे पेट के बल लेट जाती हैं. इस साल 300 से अधिक महिलाओं ने इसमें हिस्सा लिया. एक दूसरे से सटकर लेटी ये महिलाएं प्रवेश द्वार से माता के दरबार तक एक गलीचे की तरह बिछ जाती हैं. माता की सवारी आने के बाद बैगा इनकी देह पर से होकर गुजरता है. जिसके भी शरीर पर उसका पूरा पैर पड़ता है, मान्यता है कि उसकी कोख हरी हो जाती है. संतान की कामना को लेकर देश के भिन्न-भिन्न भागों में अलग-अलग मान्यताएं हैं. कहीं मंदिर में घंटा बांधने का रिवाज है तो कहीं लाल कपड़े में बांधकर नारियल को लटका दिया जाता है. कहीं धागा बांधा जाता है तो कहीं कंकड़ बांधे जाते हैं. पूर्ण आस्था के साथ ऐसा करने वालों को वांछित फल मिल भी जाता है. दरअसल, तनाव का हमारे शरीर पर गहरा असर पड़ता है. शरीर का सारा संतुलन गड़बड़ा जाता है. दिल-दिमाग का तो सभी को पता है पर पाचन तंत्र से लेकर प्रजनन तंत्र तक पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है. अकसर देखा गया है कि संतान के लिए सुबह-शाम चिंता में डूबे रहने वाले, चारों तरफ हाथ पैर मारने वालों को गर्भधारण करने में बड़ी परेशानी होती है. जैसे जैसे समय बीतता जाता है, यह उतावलापन भी बढ़ता जाता है. कुछ परिवार निराश होकर बच्चा गोद ले लेते हैं. इसके बाद तनाव खत्म और फिर अपनी गोद भी हरी हो जाती है. ऐसे असंख्य परिवार देखने को मिल जाएंगे जिनके यहां बच्चा गोद लेने के बाद अपना बच्चा भी हो गया. यह पूरा खेल तनाव से किसी मंदिर में, किसी बैगा में, किसी टोटके में गहरी आस्था होने का भी लगभग यही असर होता है. चिंता कुछ कम होती है, हार्मोन्स का संतुलन ठीक हो जाता है, शरीर अपनी स्वाभाविक गतिविधियों को ठीक कर लेता है और अकसर वह हो जाता है जिसके लिए माथा-फोड़ी कर रहे थे. कुछ ऐसा ही प्रभाव तब भी पड़ता है जब हम किसी नामचीन डाक्टर को दिखाते हैं, किसी गुरूश्रेष्ठ का आशीर्वाद प्राप्त कर लेते हैं. सनातन में आस्था को सबसे बड़ी शक्ति माना गया है. माता-पिता और ईश्वर इसी आस्था के प्रतीक हैं. जब तक हमारे साथ हैं, कोई भी संकट बड़ा नहीं होता. सूर्यषष्ठी पर्व की सभी आस्थावानों को शुभकामनाएं.