-दीपक रंजन दास
धरना देना पीड़ितों का लोकतांत्रिक अधिकार है. पर पता नहीं क्यों, इन दिनों सरकार किसी भी जवाबदेही से ऊपर उठ जाना चाहती है. इधर बातें हो रही हैं कि कौन सा मुगल शासक कितना क्रूर था, किसने धार्मिक आधार पर करारोपण किया, किस ने कितने लोगों का मारा और उधर शासन की कुर्सियों पर बैठे लोग प्रतिदिन लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. एक नौकरी किसी का जीवन बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है. खासकर तब जब वह दिव्यांग हो. एक अत्यन्त शर्मनाक आरोप का सामना फिलहाल सरकार कर रही है. दिव्यांगजनों के संगठनों का आरोप है कि कम से कम 148 लोग फर्जी विकलांग सर्टिफिकेट के आधार पर विभिन्न पदों पर काम कर रहे हैं. दिव्यांग संगठन इन फर्जी दिव्यांगों को बर्खास्त करने की मांग कर रहे हैं. इसी मांग को लेकर बुधवार को वे विधानसभा का घेराव करने जा रहे थे. सभी दिव्यांग बस स्टैण्ड पर एकत्र हुए थे. पुलिस ने वहां से उन्हें उठाकर नया रायपुर स्थित तूता धरनास्थल पर छोड़ दिया. दरअसल, शब्द बदल देने से मानसिकता नहीं बदल जाती. दिव्यागों के साथ आज भी समाज का व्यवहार वही है जो विकलांगों के साथ रहा है. पर इस बार मामला अलग है. यह मामला एक तरफ जहां वास्तविक दिव्यांगों के अधिकारों के संरक्षण का है वहीं दूसरी तरफ यह शासकीय नौकरियों में भर्ती के मामले में भ्रष्टाचार का भी है. यह मामला अगर किसी राजनीतिक नेता ने उठाया होता तो वह विधानसभा से लेकर संसद तक के भीतर चिल्ला चिल्ला कर बोल रहा होता. यह अधिकार आम आदमी के पास नहीं है. वह तो केवल धरना दे सकता है. भूख हड़ताल कर सकता है. गांधी के शांतिपूर्ण आंदोलनों का देसी राज में क्या हश्र होता है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है. किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता यदि आप तम्बू लगाकर दो चार महीना कहीं धूप-बारिश-ठंड में पड़े सड़ते रहो. एक दिन आप खुद ही थक हारकर झंडा डंडा समेटकर घर लौट जाओगे. कोई देखने या पूछने भी नहीं आएगा. इसलिए पीड़ितों को घेराव, रास्ता रोको, रेल रोको जैसे आंदोलन करने पड़ते हैं. इससे न्याय मिले न मिले, मामला एक बार को उछल तो जाता ही है. बुधवार को पुलिस जिस तरह का व्यवहार दिव्यांगजनों के साथ किया उससे और कुछ हो न हो, दिव्यांगों की एक मंशा तो पूरी हो ही गई. मामला उछल गया. तब जाकर लोगों को पता चला कि प्रदेश में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (सीजीपीएससी) से चयनित 7 डिप्टी कलेक्टर, 3 लेखा अधिकारी, 3 नायब तहसीलदार, 2 सहकारिता निरीक्षक, 3 पशु चिकित्सक सहित कुल 148 अधिकारियों ने फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र लगाकर नौकरी हासिल की है. इसी बहाने दिव्यांग संगठन ने बैकलॉग पदों दिव्यांगों की भर्ती के लिए विशेष भर्ती अभियान चलाने, पेंशन की राशि को पांच हजार रुपए करने तथा बीपीएल की शर्त को शिथिल करने की भी मांग की है.
Gustakhi Maaf: दिव्यांगों के साथ यह कैसी ड्रामेबाजी?
