-दीपक रंजन दास
राजधानी रायपुर में यातायात विभाग ने नए-नवेले ब्लैक स्पॉट की पड़ताल शुरू कर दी है. ऐसे स्थानों को चिन्हित करने के प्रयास किये जा रहे हैं जहां एक से ज्यादा मौतें हुई हैं. रायपुर की सड़कों पर सालाना औसत से 100 ज्यादा मौतें हो रही हैं. ब्लैक स्पॉट खोज भी लेंगे तो क्या होगा? अगले साल नए ब्लैक स्पॉट मिलेंगे. भारत के लिए विकास का मतलब चौड़ी सड़कें, तेज रफ्तार गाड़ियां और तमाम ऐशो आराम की सामग्रियां हैं. यह भी विडम्बना है कि अधिकांश हादसे वहीं होते हैं जहां सड़कें अच्छी होती हैं. पर मौतें अकेले सड़कों पर ही थोड़े हो रही हैं. अस्पतालों में भी 15-17 साल के दिल के मरीजों की भीड़ बढ़ रही है. इनमें से कईयों को तो बचाना तक मुश्किल हो रहा है. मधुमेह जांच शिविरों में रोज नए-नए मरीज मिल रहे हैं. इनमें से कईयों की उम्र 20 वर्ष से कम है. आधी से ज्यादा आबादी ओवरवेट हो गई है. वजन कम करने के लिए कोई डायटिंग कर रहा है, कोई जिम में पसीना बहा रहा है तो कोई सप्लिमेंट पर जी रहा है. पर जीवन में कहीं कोई अनुशासन नहीं है. भिलाई की ही बात करें तो शहर के प्रत्येक मोहल्ले में सप्ताह में दो बार सब्जी बाजार लगता है. इसमें स्थानीय बाशिंदे सब्जी खरीदने पहुंचते हैं. घर से 100-200 कदम दूर सब्जी बाजार भी लोग गाड़ियों पर पहुंचते हैं. बाजार में सब्जियां कम, सांड, स्कूटी और कारें ज्यादा नजर आती हैं. जहां सब्जी बाजार सड़कों पर लगता है वहां तो लोग कार में बैठे-बैठे ही सब्जी खरीदने की कोशिश करते हैं. मोहल्ले के मंदिर तक भी लोग कार से ही जाते हैं. सरकार केवल वही दुर्घटनाएं गिन सकती है जिसमें रिपोर्ट लिखी गई हो. टेल लाइट फूटने, हाथ-पैर टूटने की घटनाओं का तो कहीं जिक्र तक नहीं होता. इसका हल ढूंढने की कोशिश करना बेमानी है. छत्तीसगढ़ के शहरों में भी अब पार्किंग की समस्या सिर उठाने लगी है. कार वाले भी दुपहिया पर आने लगे हैं. कुछ और समय बीतने के बाद मुम्बई-कोलकाता संस्कृति यहां तक पहुंच जाएगी. लोगों के पास पार्किंग ही नहीं होगी तो गाड़ियों का करेंगे क्या? मुम्बई में गाड़ी वाले भी लोकल ट्रेनों का ही उपयोग करते हैं. सड़कों से होकर जाने में 10 गुना तक वक्त लग जाता है. फ्लैटों में रहने वालों के पास अपनी गाड़ियां और अपना पार्किंग स्पेस है. पर ये भी दिन में गाड़ी निकालने का हौसला नहीं जुटा पाते. इन दोनों महानगरों में रहने वाले लोगों को जिम जाने की भी जरूरत नहीं पड़ती. इतना पैदल चलना हो जाता है कि न केवल फिटनेस ठीक रहती है बल्कि रात को नींद भी अच्छी आती है. पर इसके लिए सरकार को भी कुछ कदम उठाने होंगे. लोकल ट्रेन और सिटी बस सेवाओं को सुधारना होगा. नो-पार्किंग के नियम सख्ती से लागू करने होंगे. रैश ड्राइविंग पर सख्ती से अंकुश लगाना होगा.