राजेश अग्रवाल
एक हफ्ते में दूसरी बार दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाकर अपनी असरदार सरदारी साबित करने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हाईकमान के भरोसे पर पूरी तरह खरे उतरे। दरअसल, चुनौतियों से पार पाना बघेल का शगल रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले और उसके बाद भी ऐसे दर्जनों अवसर आए, जब उन्होंने पूरी मजबूती के साथ चुनौतियों का सामना किया और अपने व्यक्तित्व और अस्तित्व के प्रभाव को साबित किया। अब जबकि मुख्यमंत्री पद के कथित ढाई साला फार्मूले को पूरी तरह नकार दिया गया है, भूपेश बघेल पार्टी और छत्तीसगढ़ के बीच बेहतर तालमेल बना पाएंगे। जाहिर है कि इसका फायदा कांग्रेस को आने वाले वक्त में मिलेगा।
अभी भी कई ऐसे लोग हैं जो कयासों के धोड़े दौड़ा रहे हैं। ये ऐसे लोग हैं जिन्हें लगता है कि अब भी टीएस बाबा के लिए संभावनाएं बाकीं हैं। हकीकत में, राजनीति में संभावनाएं कभी खत्म नहीं होती, किन्तु जो स्वयं को साबित करता है, सरदार भी वही होता है। ..और सच्चाई यही है कि भूपेश बघेल ने स्वयं को हाईकमान के सामने साबित कर दिया है। इसलिए अब इस बात की गुंजाइश न के बराबर है कि उनके नेतृत्व को कोई बड़ी चुनौती मिल पाएगी। टीएस बाबा अब भी असंतुष्ट हैं, ऐसे में हाईकमान का उनके प्रति क्या रूख रहता है, यह भविष्य की बात है। एक बात, जो बार-बार सामने आ रही है, वह ढाई-ढाई साल का कथिथ फार्मूला है, किन्तु क्या वास्तव में ऐसा कोई फार्मूला था भी, या यह मीडिया और राजनीतिक चिंतकों के वैचारिक उपज थी?
स्वयं सीएम भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव और छत्तीसगढ़ के प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया इस फार्मूले को नकार चुके हैं। ऐसे में एक बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर टीएस बाबा की मुख्य नाराजगी क्या थी? क्या वे वास्तव में भूपेश बघेल की जगह खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते थे? या फिर वे काम करने की ज्यादा आजादी चाह रहे थे? बहुत से सवाल हैं, जिनका जवाब आना बाकी है, परंतु यह तो तय है कि सिंहदेव, अपनी ही सरकार से खुश नहीं हैं। पिछले कुछ घटनाक्रम इसके ता•ाा उदाहरण हैं। चलताऊ कहावत है कि ‘जिधर बम, उधर हमÓ। अभी क्योंकि ‘बमÓ भूपेश बघेल हैं, इसलिए 70 विधायकों वाली कांग्रेस पार्टी के ज्यादातर विधायक, वरिष्ठ नेता, स्थानीय नेतृत्वकत्र्ता भूपेश बघेल के ही साथ हैं। दिल्ली में शुक्रवार के शक्ति प्रदर्शन को क्या हाईकमान नकार सकता है?
इधर, छत्तीसगढ़ के राजनीतिक घटनाक्रम की तुलना पंजाब से की जा रही है, लेकिन यहां स्थितियां बिलकुल भिन्न हैं। पंजाब में जहां प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू खुलकर अपनी ही सरकार के सामने खड़े हैं तो इधर, छत्तीसगढ़ में टीएस बाबा सादगी और शांति के साथ अपनी बात सार्वजनिक मंचों की बजाए हाईकमान तक पहुंचा रहे हैं। दूसरा, उनसे हाईकमान और प्रदेश की सत्ता को खुली चुनौती नहीं मिली है। इन स्थितियों में हाईकमान के लिए भी विवादों का पटाक्षेप करना आसान था। हफ्तेभर के भीतर राहुल गांधी छत्तीसगढ़ के दौरे पर आएंगे, तब संभव है कि एक बार फिर शक्ति प्रदर्शन जैसा माहौल बने। राजनीति के चतुर सुजान भूपेश इस पर एक बार फिर भारी पड़ेंगे, इसे भला कौन नकार सकता है।
सिंहदेव के समर्थक मायूस हैं। वे पहले भी मायूस हुए थे जब निगम, मंडलों और आयोग की नियुक्तियों में उन्हें महत्व नहीं मिला। समर्थकों की मायूसी भी सिंहदेव की नाराजगी का एक कारण हो सकती है। इसके अलावा अपने विभागों के फैसलों में स्वतंत्रता नहीं मिलना, अपने क्षेत्र के विकास कार्यों में महत्व नहीं मिलना जैसे कई और कारण रहे, जिन्होंने टीएस बाबा को दिल्ली का रूख करने को मजबूर किया। सीएम भूपेश के साथ दूसरी बार बैठक करने के बाद, सिंहदेव अपने बुलावे के इंतजार में हैं। वे अभी दिल्ली में ही हैं, जबकि सीएम भूपेश और उनके समर्थक विधायक व अन्य लोग आज लौट आएंगे। परिस्थितियां क्या करवट लेगी, इसका निर्णय अगली बैठक करेगी।