छोटे बच्चों के बारे में सोचते हैं तो सबसे पहले उनकी कोमल त्वचा का ही ख्याल आता है. उनकी त्वचा बहुत ही नाजुक और मुलायम होने की वजह से उनको त्वचा से जुडी परेशानियां भी अधिक होती है. हर मां यही चाहती है कि वह अपने बच्चे को अच्छी परवरिश दे. आमतौर पर बच्चो में त्वचा पर रेशेस, दाने या लाल होना, परत का निकलना, रूखी त्वचा और डाइपर रैशेज हो जाते हैं. बच्चों की स्किन बड़ों की त्वचा से ज्यादा नमी सोखती है अगर आप अपने बच्चे को त्वचा से जुड़ी परेशानियों से, खासतौर से रैशेज से बचाकर रखना चाहती हैं तो आपको उनकी त्वचा का खास खयाल रखना होगा.
बच्चो की त्वचा:- जब शरीर में हिस्टामाइन नामक केमिकल बनने की वजह से त्वचा पर एलर्जी हो सकती है. एलर्जी कई प्रकार के रैशेज और चकत्ते के रूप में होने लगती हैं. संवेदनशील त्वचा वाले शिशुओं में एलर्जी होने का खतरा ज्यादा हो सकता है. यहां तक कि गंदे डायपर, भोजन, साबुन और डिटर्जेंट से भी एलर्जी का जोखिम बढ़ सकता है.
मिलिया:- मिलिया (सफेद दाने) बहुत छोटे-छोटे उभार होते हैं जो स्किन में किसी भी उम्र में हो सकते हैं, लेकिन आमतौर पर नवजात बच्चों में देखे जाते हैं. मिलिया से कोई नुकसान नहीं होता लेकिन इनकी वजह से सुन्दरता कम हो जाती है. अधिकतर केसेस में, ये अपनेआप चले जाते हैं. इसके लिये जरूरी है की स्किन को साफ़ रखें .
रूखी त्वचा:- रूखी त्वचा की समस्या बच्चों में आम है. रूखी त्वचा के कारण उन्हें खुजली आदि की समस्या भी हो सकती है. इससे बचने के लिए बच्चे को ज्यादा न नहलाएं और नहाने के लिए हमेशा गुनगने पानी का इस्तेमाल करें. हमेशा हल्के शैंपू और क्लींजर का इस्तेमाल करें.
एक्जिमा:- यह स्किन रैशेज होता है, जो आमतौर पर शिशु के माथे, गाल या खोपड़ी पर दिखाई देता है. हालांकि, यह हाथ, पैर, छाती या शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है. यह सूखी, पपड़ीदार त्वचा होती है और किसी भी तरह की खरोंच लगने पर संक्रमित होकर छाले या फुंसी का रूप ले सकती है.
पपड़ी (क्रैडल कैप):- इसमें शिशु के सिर पर पपड़ी जम जाती है. ये सूखी और लाल होती है और इस वजह से शिशु को खुजली की समस्या भी होने लगती है. यूं तो यह अपने आप ठीक हो जाता है, लेकिन कभी-कभी जन्म के तीन महीनों में यह फिर हो सकता है. इसे क्रैडल कैप या सेबोरिएक डर्मेटाइटिस भी कहते हैं.
डाइपर रैश:- डाइपर रैश के कारण पैरों के अंदरूनी हिस्से की त्वचा लाल और संवेदनशील हो जाती है. इस समस्या से बचने के लिए बच्चे के निजी अंगों की साफ-सफाई का ध्यान रखें. साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि वो हिस्सा गीला न रहे.